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देवव्यापाश्रय चिकित्सा - नेत्र रोग नाशक : चाक्षुषी विद्या

हमारे देश में धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज को कौन नहीं जानता? गौरक्षा आन्दोलन के चलते इन्दिरा गाँधी सरकार ने इन्हें तिहाड़ जेल में डाल दिया था। जेल में भी उनका सत्संग कार्यक्रम चलता था। सरकार के समर्थन से एक दिन सत्संग कार्यक्रम के मध्य में स्वामी करपात्री जी पर कुछ अपराधियों ने लोहे की रॉड से प्रहार कर दिया। चोट इतनी गंभीर थी कि एक आँख की रोशनी चली गयी और दूसरी आँख की रोशनी भी जाने लगी। डॉक्टरों ने जाँच करके बताया कि एक आँख की रोशनी तो कभी भी नहीं लौटेगी।

किन्तु स्वामी करपात्री जी महाराज नित्य प्रात: १२ सूर्य नमस्कार और श्रीकृष्णयजुर्वेदीय चाक्षुषी विद्या (चाक्षुषोपनिषद्) का पाठ और पाठ के पश्चात् चन्दन, चावल, जल से सूर्यार्घ्य देकर लगातार सूर्योपासना करने लगे। इस उपासना के फल स्वरूप स्वामी करपात्री जी की आँखों की ज्योति धीरे-धीरे वापस आ गयी और यावज्जीवन स्थिर रही।

आजकल बच्चों के चश्मा लगना तो सामान्य बात हो गयी है तो उधर युवक युवतियों में अकाल नेत्र ज्योति कम होने के मामले बढ़े हैं। ऐसे में इस चाक्षुषी विद्या का उपयोग तथा प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। पवित्र खान-पान, शयन जागरण का नियम अपनाते हुए इस चाक्षुषी विद्या का लाभ सभी को उठाना चाहिए, इसी भावना से ‘आयुष ग्राम’ के जुलाई अंक में इसका प्रकाशन किया जा रहा है।

सूर्योदय के पूर्व पवित्र आसन में पूर्व की ओर मुँह करके बैठ जायें फिर निम्नांकित विनियोग मंत्र को पढ़ें-

विनियोग- ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिर्गायत्री छन्द: सूर्यो देवता चक्षुरोग निवृत्तये विनियोग:।

विनियोग के पश्चात् निम्नांकित पाठ करें-*

ॐ चक्षु: चक्षु: चक्षु: तेज: स्थिरो भवं। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षूरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु कुरु। यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षु:प्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नम: चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नम: करुणा करायामृताय। ॐ नम: सूर्याय। ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नम:। खेचराय नम:। महते नम: रजसे नम:। तमसे नम: असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवाञ्छुचिरूप:। हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूप:।
य इमां चाक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।
।। श्रीकृष्णयजुर्वेदीया चाक्षुषी विद्या सम्पूर्णा।।

अर्थ

विनियोग: ‘ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं, गायत्री छन्द है, सूर्यनारायण देवता हैं तथा नेत्ररोग शमन हेतु इसका जप होता है।

हे परमेश्वर, हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव। आप मेरे चक्षुओं में चक्षु के तेजरूप से स्थिर हों जाएँ। मेरी रक्षा करें। रक्षा करें। मेरी आँखों का रोग समाप्त करें। समाप्त करें। मुझे आप अपना सुवर्णमयी तेज दिखलायें। दिखलायें। जिससे मैं अँधा न होऊँ। कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें। आप मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। मेरे जितने भी पीछे जन्मों के पाप हैं जिनकी वजह से मुझे नेत्र रोग हुआ है उन पापों को जड़ से उखाड़ दे, उखाड़ दें। हे सच्चिदानन्दस्वरूप नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यस्वरूपी भगवान् भास्कर आपको नमस्कार है। ॐ सूर्य भगवान् को नमस्कार है। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान् सूर्यदेव आपको नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी आपको नमस्कार है। परमश्रेष्ठ स्वरूप आपको नमस्कार है। ॐ रजोगुण रुपी भगवान् सूर्यदेव आपको नमस्कार है। तमोगुण के आश्रयभूत भगवान् सूर्यदेव आपको नमस्कार है। हे भगवान् आप मुझे असत से सत की ओर ले जाइये। अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइये। मृत्यु से अमृत की और ले चलिये। हे सूर्यदेव आप उष्णस्वरूप हैं, शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान् सूर्य, शुचि तथा अप्रतिरूप रूप हैं। उनके तेजोमयी स्वरूप की समानता करने वाला कोई भी नहीं है। जो ब्राह्मण इस चक्षुष्मतिविद्या का नित्य पाठ करता है उसे नेत्र सम्बन्धी रोग कभी नहीं होता है। उसके कुल में कोई अँधा नहीं होता। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या को देने (सिखाने) पर इस विद्या की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।

विशेष- इसका प्रात: १,५,११,२१ या अधिक जप भी किया जा सकता है। इस पाठ में ‘ब्राह्मण’ के पाठ करने का उल्लेख आया है। जिसका तात्पर्य ब्राह्मण जाति से नहीं अपितु ब्रह्मकर्म मय आचरण रखना चाहिए। गीता 18/24 में शान्ति, संयम, तप, पवित्रता, धैर्य, सरलता, ज्ञान,विज्ञान, परलोक में विश्वास ये ब्रह्मकर्म हैं।

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हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

आयुष ग्राम - मासिक पत्रिका -
पृष्ठ 17-18 अंक-7, जुलाई 2024

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