
त्रिदोषजा योनि रोग निदान और सफल चिकित्सा !!
आजकल अज्ञानता के कारण ‘समशन’ तो सामान्य बात हो गयी है लोग आग से पका भोजन और कच्चा सलाद आदि सब एक साथ सेवन कर रहे हैं और अपने को स्टैण्डर्ड मान रहे हैं इसीलिए लोग रोगों से घिर रहे हैं। सुश्रुत जैसा वैज्ञानिक इस तरह से भोजन करने को निहन्त्याशु बहून्व्याधीन्करोति वा।। सु.सू. 46/507 कहते हैं अर्थात् इस तरह का भोजन प्राणघातक, रोगकारक तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता नाशक और अनेकों रोगों को उत्पन्न करने वाला होता है और यही बढ़ते प्राणघातक रोगों का प्रमुख कारण है।
त्रिदोषजा योनि व्यापद एक नारी रोग है जो तीनों दोषों वात, पित्त, कफ के एक साथ कुपित/असंतुलित होने से होता है। इसी को सर्वजा या सन्निपातिकी योनि व्यापद भी कहते हैं।
आजकल अज्ञानता, आधुनिकता, जिह्वालौल्य, असंयम और गलत रीति/प्रथा के चलते गलत खान-पान और जीवनशैली का प्रसार हो गया है जिससे जीवनशैली की बीमारियाँ भी फ़ैल रही हैं। यह कहना भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि ऐसी व्याधियाँ प्रसारित हो रही हैं जिनका प्रचलित चिकित्सा विधि से समाधान भी नहीं मिल रहा। ऐसी ही एक व्याधि है त्रिदोषजा योनि।
रोग के कारण और लक्षण-
इसमें योनि में शोथ, जलन (दाह), श्वेत पिच्छिल, चिपचिपे पदार्थ का स्राव होता है। इस संक्रमण के कारण खुजली, ज्वर, भूख की कमी, बेचैनी, अरति, अनिद्रा, दीनता उत्पन्न होती है। रोग की तीव्रता, गतिशीलता उसकी जीर्णता या उन्नत (Advance) चरण पर आधारित होती है। चूँकि इस रोग में तीनों दोष (वात, पित्त, कफ) कुपित रहते हैं इसलिए रोग की गंभीरता तो रहती ही है साथ ही जटिलता भी रहती है।
विश्व के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक बताते हैं-
समश्नन्त्या रसान् सर्वान् दूषयित्वा त्रयोमला:।
योनिगर्भाशयस्था: स्वैर्योनि युञ्जन्ति लक्षणै:।
साभवेद्दाह शूलार्ता श्वेतपिच्छिल वाहिनी।।च.चि. 15/14-15।।
रुग्णा द्वारा हितकर और अहितकर आहार एक साथ सेवन किया जाता है इसे गलत तरीके से आहार करने को आचार्य सुश्रुत (सू. 46/507) ‘समशन’ कहते हैं।
इस गलत खान-पान से वात, पित्त, कफ तीनों एक साथ प्रकुपित होकर योनि और गर्भाशय में स्थान संश्रय करते हैं जिससे तीनों दोषों के रोग लक्षण योनि और गर्भाशय में उपस्थित रहते हैं।
25 मार्च 2025 को आयुष ग्राम चिकित्सालय की ओपीडी में 38वें क्रम में सावित्री राय उम्र 42 जिला- छतरपुर (म.प्र.) को लेकर उसके परिजन ओपीडी में प्रवेश हुए।
रुग्णा गंभीर समस्या से ग्रस्त थी, 1 साल से योनि मार्ग में सूजन और पूय (Pus) आ रहा था। इसके पूर्व इन्होंने छतरपुर ग्वालियर, भोपाल, जानकीकुण्ड आदि अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन आराम नहीं था। भूख समाप्त थी, उसी पूय के लगने से जघन प्रदेश में संक्रमण हो गया था। खुजली होती थी, खुजलाने से घाव बन रहे थे। रुग्णा कराह रही थी। आप सोच सकते हैं कि एक साल से जिसे ऐसी समस्या हो, उसे वैâसी पीड़ा होगी।
हमने नाड़ी परीक्षण किया फिर ओपीडी की नर्स को रुग्णा को अलग कक्ष में ले जाकर मेज पर लिटाकर परीक्षण हेतु निर्देश दिया। नर्स ने रुग्णा को लिटाकर जैसे ही साड़ी को ऊपर उठाया तो पूरे कमरे में दुर्गन्ध फ़ैल गयी। नर्स के साथ सीआरएवी शिष्या डॉ. अनुराधा कुमारी भी थीं जिन्होंने मुझे रुग्णा की स्थिति से अवगत कराया। मैंने भी जाकर रुग्णा को देखा, देखने के पश्चात् रुग्णा को अंतरंग विभाग में प्रवेश हेतु परामर्श दिया।
किन्तु रुग्णा का पति असहमत होकर वापस चला गया। दूसरे दिन 26 मार्च 2025 को आया 9 बजकर 41 मिनट पर फिर रजिस्ट्रेशन कराकर रुग्णा को अंतरंग विभाग में प्रविष्ट करा दिया।
हमने रुग्णा की चिकित्सा व्यवस्था इस प्रकार विहित की-
सर्वप्रथम, नीम, चिरायता, रास्ना, एरण्ड, मदनफल, गिलोय, पुनर्नवा आदि दशमूल क्वाथ में एरण्ड तैल सैन्धव लवण, मधु मिश्रित निरूह वस्ति देने को लिखा और औषधि व्यवस्था में-
सारिवादि वटी 250 मि.ग्रा., (गुग्गुल) सर्वतोभद्रा रस स्वर्ण 1 गोली, प्रवाल भस्म 250 मि.ग्रा., संगेयशवपिष्टी 125 मि.ग्रा., मुक्तापिष्टी 65 मि.ग्रा., स्वर्णभूपति रस 65 मि.ग्रा. मिलाकर दिन में 3 बार मधु के अनुपान से।
अतीस, चोपचीनी, चिरायता, दार्वी, त्रिफला का योग 5-5 ग्राम दिन में 2 बार।
त्र्यूषणादि मण्डूर 5-5 ग्राम भोजन के पूर्व।
मंजिष्ठादि क्वाथ सांद्र (लघु) भा.प्र. 10 मि.ली. और वयस्यादि अर्क 10 मि.ली. मिलाकर रात में सोते समय।
यहाँ सोचनीय विषय है कि हमने वस्ति क्यों लिखी जबकि समस्या पूय (Pus) की सर्वाधिक है। इस पर ऋषि कहता है-
नहि वातादृते योनिर्नारीणां सम्प्रदूष्यति।
शमयित्वा तमन्यस्य कुर्यात् दोषस्य भेषजम्।।च.चि. 30/115-116।।
अर्थात् नारियों की योनि बिना वात दोष के रुग्ण नहीं होती। क्योंकि यह अपानवायु का क्षेत्र है इसीलिए ऋषि कह देता है कि- विनिहन्ति गर्भान् विकृतिमापादयस्यति कालं वा धारयति।। च.सू. 12/8।। अर्थात् वायु गर्भ को नष्ट कर देता है। गर्भ में विकृति उत्पन्न कर देता है। इसलिए ऋषि निर्देश देते हैं कि पहले वात का शमन करके अन्य दोषों की चिकित्सा करें और सभी जानते हैं कि ‘वात’ के लिए वस्ति परम आवश्यक है।
इसके अलावा हमने सीआरएवी शिष्या डॉ. शोभना शर्मा को शुभ्रा भस्म से योनिप्रक्षालन करवाने साथ ही चिरबिल्व कषाय से भी योनि प्रक्षालन का निर्देश दिया।
पथ्याहार में-
पहले जौ की पेया, फिर प्रमथ्या और जैसे ही क्षुधा बढ़ती गयी तो रोटी, दलिया भी दिया जाने लगा।
हमने औषधि व्यवस्था में सारिवादि वटी का चयन किया जोकि एक ऐसा शास्त्रीय कल्प है जो केवल कर्ण रोगों तक ही नहीं बल्कि मस्तिष्क, नाड़ी संस्थान बलवर्धक और नाक, कान आदि इन्द्रियगत वात विकृति को मिटाकर बल बढ़ाता है। शास्त्र स्पष्ट कहता है-
सारिवादि वटी हन्यात् स्त्रीगंदानखिलानपि।। भै.र.।।
अर्थात् यह अकेले सम्पूर्ण नारी रोगों को मिटाने में समर्थ है। पर दुर्भाग्य है कि फार्मेसियाँ केवल इसका प्रचार-प्रसार कान के रोगों तक सीमित किए हैं। सर्वतोभद्रा रस स्वर्ण तो ‘न सोऽस्ति रोग: खलु देहिदेहे।।’ (भै.र.) अर्थात् कोई ऐसा रोग नहीं जो इससे मिट न सके इतनी बड़ी उपाधि धारण किए है। स्वर्णभूपति रस भी शूलनाशन, शोथनाशन, बलवर्धन और रसायन गुण सम्पन्न है।
आप इसके घटक द्रव्यों के अनुसार विवेचना करेंगे तो पायेंगे यह योग इस रुग्णा के शोथ, शूल, दाह, पूय, पिच्छिल स्राव, दौर्बल्य, धात्विग्नि मन्दता सभी को मिटाने में समर्थ है।
अतीस आदि का योग आम निर्मिति, ज्वर, कफ विकृति भूतोपसर्ग को नष्ट करने में समर्थ है तो साथ ही वातानुलोमन भी करता है।
रुग्णा का प्रयोगशालीय रक्त परीक्षण करने पर सीआरपी 70.6 बढ़ा पाया गया। ऐसे में स्पष्ट है कि अन्दर पर्याप्त शोथ है वह भी आमज। ऐसे में भी अतीस का उपर्युक्त योग फलप्रद है।
इसीलिए हमने त्र्यूषणादि मण्डूर की मात्रा भी जोड़ी जो रसाग्नि, रक्ताग्नि को व्यवस्थित कर रक्ताणुओं को पुष्ट तो करेगा ही तथा आम और शोथ नाशन एवं कृमिनाशन में भी सहायता पहुँचायेगा। क्योंकि इसके घटक द्रव्य त्रिकटु, त्रिफला, विडंगादि से युक्त हैं।
रात में सोते समय- मंजिष्ठादि क्वाथ (लघु) का सेवन रक्तप्रसादन का कार्य करने तथा पित्त के कारण होने वाले दाह, पाक आदि मिटाने तथा उसकी संस्तुति न होने देने में समर्थ है। वहीं आँतों में जमे मल को भी शनै: शनै: बाहर करता है। हमने बहुत से रोगियों में इसका प्रयोग करके वातरक्त की अवस्था में बढ़े सीआरपी को स्थायी रूप से घटाने में बहुत सफलता पायी है।
परिणाम-
चौथे दिन से ही दुर्गन्ध कम होने लगी, 7 दिन में 70% से अधिक रोग लक्षण/उपद्रव मिट गये। 2 सप्ताह में रुग्णा पूर्ण स्वस्थ हो गयी।
बस! आवश्यकता है आयुर्वेद ऋषियों द्वारा प्रतिपादित किये गये ज्ञान, शोध, सिद्धान्तों को समझने और उनके अनुसार चिकित्सा करने की।
मैं रामकरन राय, मेरी पत्नी श्रीमती सावित्री राय, उम्र 42 वर्ष, लवकुश नगर, छतरपुर (म.प्र.) से हैं। मेरी पत्नी को 1 साल से उनके वेजाइनल (योनि) में यूटीआई इंफेक्शन और सूजन तथा मवाद बनने लगी, उठने-बैठने में समस्या होने लगी, मवाद (Pus) तो इतना रहता था जैसे मासिक धर्म हो रहा हो, यहाँ तक कि खड़े तक नहीं हो पाती थी।
सबसे पहले लवकुश नगर में ही दिखाया, 2 माह तक इलाज चला लेकिन कोई आराम नहीं मिला, फिर छतरपुर में दिखाया 2-3 माह इलाज चला हल्का आराम तो मिला लेकिन जैसे ही दवायें चेंज हुयीं पुन: समस्या होने लगी, छतरपुर में ही दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने तुरन्त रिफर कर दिया, फिर हम लोग झाँसी में सरोज हॉस्पिटल ले गये, वहाँ पर 15 दिन तक भर्ती रखा कुछ दिन तो आराम रहा लेकिन दवायें बन्द होने पर फिर से समस्यायें बढ़ने लगीं। फिर ग्वालियर में भी दिखाया वहाँ की दवाओं से साइड इफेक्ट होने लगे, झटके जैसे आने लगे तो दवायें बन्द कर दीं।
फिर जानकीकुण्ड चित्रकूट में भी इलाज चला, आराम तो नहीं मिला और गले में दाद-खुजली जैसे हो गया, तो वहाँ की भी दवायें बन्द कर दीं। फिर हमें आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट की जानकारी डॉ. संतोष मिश्रा के द्वारा मिली। हम 24 मार्च 2025 को अपनी पत्नी सहित आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचे, रजिस्ट्रेशन करवाया, केसहिस्ट्री हुयी, उस समय मेरी पत्नी रोते हुए ओपीडी में पहुँची, वेजाइनल इंफेक्शन, खुजली, सूजन, पस बहुत ज्यादा आ रहा था, सीआरपी जाँच हुयी तो उसमें 70.6 आया।
फिर हमें ओपीडी-2 में आचार्य डॉ. वाजपेयी जी के पास भेजा उन्होंने नाड़ी परीक्षण कर 2 सप्ताह आवासीय चिकित्सा की सलाह दी, आवासीय चिकित्सा शुरू हो गयी, दूसरे दिन से ही आराम मिलने लगा, 2 सप्ताह में ही मेरी पत्नी को 90% आराम है।
अब वह खूब चल-फिर लेती हैं, पस नाम मात्र का रह गया है, खुजली व शोथ हल्की रह गयी हैं और 8 अप्रैल 2025 की जाँच में सीआरपी 18 आ गया।
मैं और मेरा पूरा परिवार बहुत खुश हैं, मैं सभी से यही कहना चाहूँगा कि मैं साल भर से पत्नी को लेकर इधर-उधर एलोपैथ में भटकता रहा, लेकिन कहीं आराम नहीं मिला, मुझे यहाँ पर दूसरे दिन से आराम मिलने लगा था, न कोई एलोपैथ दवायें और न ही कोई इंजेक्शन दिये गये।
हमारे जैसे जो लोग कहते हैं कि आयुर्वेद धीरे-धीरे काम करता है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है, अच्छे परिणाम आते हैं। मैं तो सरकार से भी यही कहना चाहता हूँ कि आयुष ग्राम जैसे आयुर्वेद अस्पताल कई जगह होने चाहिए और आयुर्वेद में भी एलोपैथ की तरह सुविधायें होनी चाहिए।
मैं गुरु जी व उनके पूरे स्टॉफ को कोटि-कोटि नमन करता हूँ जिन्होंने अपनी चिकित्सा से आज मेरे जैसे कई रोगियों को लाभ पहुँचा रहे हैं।
रामकरन राय मेरी पत्नी श्रीमती सावित्री राय
राजापुर (लवकुश नगर), छतरपुर (म.प्र.)
मोबा. नं.- 7389829634
हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।
सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्
"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिकाआयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)
प्रधान सम्पादक
आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
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