Image

नकली और गुणहीन दवाओं को समझें!

आयुष मेडिकल एसोसिएशन के संस्थापक, राष्ट्रीय महासचिव वैद्य आर.बी. मिश्र आयुर्वेदाचार्य जो अखिल भारतीय आयुर्वेद विद्यापीठ के स्नातक हैं, उन्होंने एक रोगी में स्वर्णमालती वसंत लम्बे समय तक प्रयोग किया, यह औषधि भी एक प्राचीन फार्मेसी की थी। औषधि का जब सकारात्मक परिणाम नहीं आया तो उन्होंने उस औषधि को GEO-CHEM मुम्बई, परीक्षण के लिए भेज दिया। परीक्षण के बाद यह रिपोर्ट आयी- उसे देखकर वैद्य आर.बी. मिश्र जी ने बताया कि मेरे तो पाँवों के तले की जमीन खिसक गयी, स्वर्णमालती वसंत में ०.०२७% स्वर्ण। जिसका मतलब स्वर्ण है ही नहीं। जबकि स्वर्णमालती वसंत में २ से ३% तक स्वर्ण होना चाहिए।

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि इसीलिए हम ‘आयुष ग्राम’ में उन्हीं फार्मेसियों की स्वर्णयुक्त औषधियों का प्रयोग करते हैं जिनका प्रयोगशालीय परीक्षण करा लेते हैं। पिछले वर्षों में हमने लगातार ये परीक्षण कराये और उनकी रिपोर्ट भी हमने चिकित्सा पल्लव में प्रकाशित की थी।

देश का प्रतिष्ठित समाचार पत्र हिन्दुस्तान अपनी ३ अप्रैल २०२४ की सम्पादकीय में लिखता है कि-

‘‘इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे देश में आयुर्वेद बेहद समृद्ध चिकित्सा पद्धति है और करोड़ों लोग इस प्रणाली से लाभान्वित भी हुए हैं।’’
किन्तु जालसाज, नकलची, मुनाफाखोर लोग इस चिकित्सा पद्धति को भी नहीं छोड़ रहे। ऐसा करना केवल स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही नहीं बल्कि राष्ट्रद्रोह है। जहाँ आज पूरा विश्व इस हानिरहित वैदिक चिकित्सा पद्धति के प्रति आशान्वित और विश्वस्त नजरों से देख रहा है वहीं ये मुनाफाखोर इस पवित्र चिकित्सा प्रणाली को भी अपने कुकृत्यों से अविश्वसनीय करने में जुटे हुये हैं।

यद्यपि हम हमेशा लोगों को बताते हैं कि जो दवा खाते ही दर्द में राहत दे, सांस फूलने में आराम दे वह दवा आयुर्वेदिक नहीं हो सकती, इन दवाओं में कोई न कोई स्टेरॉयड या पेन किलर अवश्य होता है। अब तो शुगर के रोगियों को भी ये जालसाज कहीं जड़ी-बूटी के नाम पर तो कहीं चूर्ण के नाम पर ऐसी दवा दे रहे हैं जो तुरन्त शुगर को कम कर देती है, यह दवा कभी भी आयुर्वेदीय नहीं हो सकती है।

चतुष्पाद चिकित्सा में औषधि का एक विशेष स्थान है इसके बिना चिकित्सा की सिद्धि नहीं हो सकती। किन्तु जब औषधि ही नकली, मिलावटी या विषाक्त हो तो क्या कहा जाये? कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के सभी समाचार पत्रों में एक समाचार प्रकाशित हुआ कि आयुर्वेद की ३२ दवाइयाँ प्रतिबन्धित कर दी गयीं हैं। जाँच में ये नकली और मिलावटी पायी गयी।

समाचारों में बताया गया कि सरकार की ओर से जब ये दवायें जाँच के लिए भेजी गयीं तो इनमें मिलावट की बात सामने आयी। इनमें ज्वाला दाद, रीमो प्रवाही, सुन्दरी कल्प सीरप, त्रयोदशांग गुग्गुल, वेदनान्तक वटी, एसीन्यूट्रा लिक्विड, सुपर सोनिक कैप्सूल, बोस्टा ४०० टेबलेट और बायना प्लस नकली है।

और तो और आँवला चूर्ण तक में मिलावट करने में ये धूर्त व्यापारी संकोच नहीं कर रहे।

विश्वास गुड हेल्थ कैप्सूल जो आयुर्वेद के नाम पर बेचा जा रहा है उसमें बीटामेथासोन मिला पाया गया। यह बहुत ही खतरनाक रसायन है, बेटनीसॉल टेबलेट में यही पाया जाता है। इसके बहुत ही कुप्रभाव होते हैं जैसे-सिरदर्द, अवसाद, मूड में बदलाव, नींद की समस्या, झुनझुनी, जलन, जकड़ाहट, चक्कर आना, कमजोरी, थकान, पोटेशियम का घट जाना, दिल की धड़कन बढ़ना और इसे खाते-खाते व्यक्ति मधुमेह का रोगी भी हो जाता है।

पेननिल चूर्ण में आईबोप्रोफेन पाया गया। यह ऐसा केमिकल है जो हृदय रोग या मध्यम हृदय के विफलता का कारक है जिसे स्ट्रोक पड़ा है, किडनी, लीवर की समस्या, अस्थमा, फीवर या एलर्जी रोग हो उसे यह नहीं दिया जाना चाहिए। इसका सेवन किडनी और हार्ट पर बुरा प्रभाव डालता है।

इसके अलावा एज फिट चूर्ण और योगी केयर में भी बेटामेथासोन पाया गया, जिसे लोग ताकत, जवानी, मोटे होने के लिए सेवन करते हैं।

अमृत आयुर्वेदिक, स्लीमेक्स चूर्ण एवं माइकॉन चूर्ण में प्रेडनीसोलोन का मिश्रण पाया गया, यह सेन्थेटिक स्टेरॉयड है। जिसके खाने के बाद भूख बढ़ती है, वजन बढ़ता है, चेहरा भरा-भरा लगता है। किन्तु कुछ ही दिनों बाद जब इसके दुष्प्रभाव सामने आते हैं तो मांसपेशियों में ऐंठन, त्वचा मोटी, हड्डियों की कमजोरी, भुरभुरापन, हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत होती है। महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म होता है। इसके अलावा स्वभाव में परिवर्तन, अनिद्रा, बार-बार पेशाब आने की शिकायत होती है। तमाम लोगों को मधुमेह की भी बीमारी हो जाती है।

हम पुन: बताते चलें कि यह एक पावरफुल स्टेरॉयड है जिसे कुशल डॉक्टर अपनी निगरानी में बहुत ही सावधानी से प्रयोग करता है।

दर्दमुक्ति चूर्ण तथा आर्थोनिल टेबलेट/चूर्ण में डाइक्लोफेनिक पाया गया है। यह ऐसा सेन्थेटिक, दर्द निवारक (पेन किलर) द्रव्य है जो गुर्दे (किडनी) फेल करता है।

डायवियंट शुगर केयर टेबलेट और डाइवियोग केयर में ग्लिम्पैराइड की मिलावट पायी गयी। बढ़ते मधुमेह रोग और फिर मधुमेह की अंग्रेजी दवा खाते-खाते उसके साइड इफेक्ट देखकर अब पूरी दुनिया भारतीय चिकित्सा वैदिक चिकित्सा की पवित्रता, प्रभावशालिता, निरापदता के कारण आयुर्वेद की ओर झुक रही है, किन्तु ऐसे मानव और मानवताघाती, कृतघ्न, पापी, धूर्त और नारकीय लोग जिन्हें न तो लोक-परलोक का भय है न अपनी और न वैदिक चिकित्सा की प्रतिष्ठा का मूल्यांकन है वे आयुर्वेदिक दवाओं में सेन्थेटिक केमिकल मिला रहे हैं।

अरे! धूर्तों तुम लोग ऐसी स्थिति में उन्हें सीधे-सीधे एलोपैथ लेते रहने की सलाह दो और साथ में अपनी वैदिक चिकित्सा प्रयोग करो यदि आपकी चिकित्सा प्रभावशाली और रोग रोगी के अनुकूल होगी तो धीरे-धीरे एलोपैथ छूट जाएगी और आपकी औषधि काम करने लगेगी, फिर अपनी दवाइयाँ भी धीरे-धीरे बन्द कराना चाहिए और रोगी को सही और आरोग्यकर जीवनशैली अपनाने की सलाह देनी चाहिए ताकि रोग की पुनरोत्पत्ति न हो।