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अजय गुप्ता जैसे कोई भी बच सकता है : डायलेसिस से!!

आप अनुभव करें जैसे-जैसे देश से वैदिक चिकित्सा और उसके नियम-संयम, उपदेश कम होने लगे वैसे-वैसे भयावह और मारक रोग बढ़ने लगे।

२९ अगस्त २०२४ को एक समाचार प्रकाशित हुआ कि देश के ७०% युवा सेकेण्डरी हायपर टेंशन से प्रभावित हैं उनमें किडनी, ब्रेन और हार्ट रोग के खतरे मड़रा रहे हैं। इनसे बचने के उपायों में भी वैज्ञानिकों ने खान-पान, जीवनशैली में बदलाव और योग अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग बताया है। यदि इसके बावजूद भी हम और हमारे समाज के बुद्धिजीवी जागरूक नहीं हुये और समाज को जागृत कर प्राचीन वैदिक भारत की ओर नहीं लौटे तो भविष्य भयावह है। हमें संकल्प करना होगा कि हम देश में किडनी, हार्ट, ब्लडप्रेशर के रोगी नहीं बढ़ने देंगे।

आयुष ग्राम चिकित्सालय निरन्तर किडनी फेल्योर पर कार्य कर रहा है और अच्छी सफलता मिल रही है।

३ जुलाई २०२४ को ताड़ीघाट (मेंहदीपुर), गाजीपुर (उ.प्र.) से ३७ वर्षीय अजय कुमार गुप्ता को लेकर उसके परिजन आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आये। बताया कि २०१३ से मधुमेह की समस्या, फिर एपेण्डिक्स, पेट दर्द हुआ हॉस्पिटल ले गये वहाँ एपेण्डिक्स की समस्या बतायी। २३ दिनों तक एलोपैथ इलाज किया, उल्टियाँ होने लगीं जाँच कराया तो किडनी फेल्योर बताया यूरिया २१३.१, क्रिटनीन १४.८, यूरिक एसिड ९.३ फॉस्फोरस ८.८ आया।

डॉक्टरों ने कहा कि डायलेसिस के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है। हमने डायलेसिस नहीं कराया और आयुष ग्राम चित्रकूट चले आये।

हमने श्री अजय गुप्ता का प्रकृति परीक्षण कर आवासीय चिकित्सा में ले लिया। रोगी की प्रकृति वात पित्तज थी, रस, रक्त,लसीका से लेकर ओज तक क्षय था, शरीर कृश और ३७ वर्ष की उम्र में चेहरा निस्तेज था, उसे विबन्ध भी था।

हमने रोगी की सम्प्राप्ति विनिश्चय की तो पाया कि- ११ साल से मधुमेह परिणामत: ओजक्षरण, वातवृद्धि, शरीर कार्श्यता, वात प्रकोप, विषमाग्नि, उदरशूल, उपचार वैषम्य, आम विष (यूरिया, क्रिटनीन) का निर्माण 👉 वृक्काकर्मण्यता (C.R.F.)

आचार्य चरक कहते हैं कि-

‘किन्त्वेतानि विशेषतोऽनिलाद्रक्ष्याणि, अनिलो हि पित्त कफसमुदीरणे हेतु: प्राणमूलं च।।’

च.सि. ९/७

अर्थात् हृदय, शिर और वस्ति (मूत्रवह संस्थान/वृक्कादि =Kidney) ये मर्म स्थान (Vital Organs) हैं इनकी वायु से विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि वायु ही पित्त और कफ को उभाड़ने में कारण बनता है और यही वायु प्राणों का हेतु है।

किन्तु आधुनिक (एलोपैथ) चिकित्सा में शरीर के मुख्य धारक तत्व वात,पित्त, कफ के संतुलन और असंतुलन पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता और केवल रोग लक्षणों को मिटाने की चिकित्सा ही की जा रही है जिससे रोग का बीज मिटने के बजाय नए-नए रूप में अंकुरित होता रहता है, आज के रोगी और उनके परिजन भी इस महत्वपूर्ण सिद्धान्त से अनभिज्ञ हैं परिणामत: किडनी फेल्योर और न जाने कितने घातक रोग सामने आ रहे हैं जिससे मानव जीवन त्रस्त है अत: अब सभी को इस ओर जागरूक होना है।

हमने रोगी को सान्त्वना दी और आश्वस्त किया कि हमारा प्रयास होगा कि आप डायलेसिस से बचें।

श्री अजय गुप्ता को ४ सप्ताह तक आवासीय चिकित्सा में रखा गया। चिकित्सा में विश्व के महान् प्राचीनतम चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक के सिद्धान्तों का आडोलन किया गया। वे कहते हैं-

‘स बस्तिकर्मसाध्यतम: तस्मान्न वस्तिसमं किंचित् कर्म मर्मपरिपालनमस्ति।।’

च.सि. ९/७।।

अर्थात् हृदय, शिर और वस्ति (मूत्रवह संस्थान) के परिपालन के लिए वस्तिकर्म के समान अन्य कोई चिकित्सा कर्म नहीं है।

आचार्य चरक आगे यह भी कहते हैं कि

महामर्मपरिपालनार्थं प्रयोजयेत् वातव्याधिं चिकित्सां च।।

च.सि. ९/७।।

अत: निम्नवत् चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-

पंचकर्म में-

शष्टिकशालिपिण्ड स्वेद और पंचतिक्त कषाय, एरण्ड तैल, सैंधव लवण मिश्रित निरूह वस्ति। दूसरे प्रहर में शिरोधारा शंखपुष्पी तैल से। इसके अतिरिक्त शंखपुष्पी तैल की सर्वांगधारा भी दी गयी। मध्य में सर्वांगस्वेद, अनुवासन भी दिया गया।

औषधि व्यवस्था-
  • १. रसोनक्षीरपाक प्रात: ६ बजे, कफकाल में।
  • २. महेश्वर वटी नीलकण्ठ रस में तथा यशद भस्म १-१ ग्राम, स्वर्णमाक्षिक भस्म मु.यु., प्रवाल भस्म २-२ ग्राम, विदारीकन्द चूर्ण १० ग्राम। सभी घोंटकर १६ मात्रा। ऐसी १-१ मात्रा दिन में २ बार भोजनोपरान्त।
  • ३. इन्दुकान्त घृत ५-५ ग्राम भोजन के २०-२० मिनट पूर्व।
  • ४. मुस्तादि कषाय और निम्बादि कषाय ५-५ मि.ली. चतुर्गुण जल मिलाकर भोजनोत्तर।
आहार व्यवस्था-

परवल, लौकी, तुरई की सब्जी, मूँग की छिलका रहित दाल।

आचार्य चरक कहते हैं-

निस्तुषं युक्तिभ्रष्टं च सूप्यं लघुविपच्यते।।

च.सू १७/३१०

छिलका निकालकर युक्ति पूर्वक अच्छी तरह से भूनकर बनायी गयी दाल पचने में हल्की होती है।

उपयुक्त शोधन शमन चिकित्सा से श्री अजय गुप्ता में ४८ घण्टे में सुधार होने लगा। श्वास फूलना कम हो गया, नई चेतना का संचार होने लगा, भूख और नींद सम्यक् होने लगी। रोगी के परिजनों में प्रसन्नता आ गयी।

एक सप्ताह बाद जब खून की जाँच करायी तो यूरिया १०३.१, क्रिटनीन ७.१ तथा फॉस्फोरस ५.४ हो गया।

यह रिपोर्ट आश्चर्य चकित करनेवाली थी,हमने पैथालॉजिस्ट से पुन: परीक्षण करने के लिए कहा तो यही रिपोर्ट हुयी। रोगी के परिवारीजन बहुत प्रसन्न थे।

शोधन और शमन चिकित्सा चलती रही, २४ जुलाई २०२४ को जब रक्त परीक्षण कराया तो यूरिया २४.५ और क्रिटनीन १.२, फॉस्फोरस ३.८ हो गया।

जहाँ हमने रोगी को ४ सप्ताह तक आवासीय चिकित्सा की सलाह दी थी वहाँ २ सप्ताह में ही यूरिया, क्रिटनीन सामान्य होकर रोगी पूर्ण स्वस्थ हो गया। फिर भी हमने आगे एक सप्ताह तक निरीक्षण (Observation) में और रखा। इसके बाद डिस्चार्ज कर दिया।

श्री अजय गुप्ता आज भी पूर्ण स्वस्थ हैं, हर माह ‘फॉलो-अप’ में आते हैं।

उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था ने मार्गावरोध मिटाकर तथा शरीर के धारक तत्त्वों (धातु) का पोषण और निर्माण कर वात का शमन किया। परिणामत: अग्नि व्यापार क्रम संतुलित हुआ जिससे आमविष का निर्माण रुक गया तो उधर संतुलित वात ने मल (यूरिया, क्रिटनीन) आदि को बाहर करना प्रारम्भ किया क्योंकि ‘क्षेप्ता बहिर्मलानाम्’ (च.सू. १२/८) अर्थात् शरीर के (यूरिया, क्रिटनीन, यूरिक एसिड आदि) मलों को बाहर करने में संतुलित और निर्दोष वायु ही सक्षम है। अग्नि व्यापारक्रम के संतुलित होने उधर ब्रह्मचर्य का पालन करने से ओज का क्षरण रुका जिससे शरीर में नई ऊर्जा का आविर्भाव हुआ।

एक रोग की चिकित्सा से अन्य असंतुलन मिट गये। इतनी श्रेष्ठ चिकित्सा है आयुर्वेद पर तब, जब शास्त्रीय ढंग से की जाय। हमारे देश के आयुष चिकित्सकों को इसे जीना चाहिए।

आयुष ग्राम में प्रतिमाह अनेकों रोगी डायलेसिस से बचते हैं और छुटकारा पाते हैं। दुर्भाग्य देश का कि सरकार आयुर्वेद या आयुष को ऐसा नहीं बढ़ा रही न ही प्रचार-प्रसार कर रही ताकि लोग सबसे पहले एलोपैथ में न जाकर आयुर्वेद की ओर जायें। जिससे हजारों लोग प्रतिवर्ष डायलेसिस से बच सकते हैं।

हमने इतने सालों के चिकित्सानुभव में यह पाया है कि रोगी जितना अधिक अंग्रेजी/सेन्थेटिक दवा खाकर आता है उसमें उतना ही धीमा और कठिनाई से सुधार आता है।

हमने यह पाया है कि प्रत्येक रोगी में शारीरिक, प्रकृति, देश, काल, सात्म्य, असात्म्य के अनुसार पृथक्-पृथक् चिकित्सा परिणाम आते हैं और पृथक्-पृथक् समय लगता है।

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंच. (V.M.U.) एन.डी.,
साहित्यायुर्वेदरत्न, विद्यावारिधि (आयुर्वेद),
पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ.प्र. शासन।
अजय गुप्ता ने स्वस्थ होने के पश्चात् अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
डॉक्टर कहते थे डायलेसिस : आयुष ग्राम ने स्वस्थ किया!!

मैं अजय कुमार गुप्ता (३७), एक इलेक्ट्रीशियन हूँ। मुझे सन् २०१३ में सुगर हुआ था, उस समय मैंने १५-२० दिनों तक एलोपैथ दवायें लीं क्योंकि सुगर हाई रहता था।

फिर १२ जून २०२४ को अचानक पेट में असहनीय दर्द हुआ तो स्थानीय डॉक्टर के पास ले जाया गया तो उन्होंने कुछ दवायें और तुरन्त इंजेक्शन लगाये तो उससे हल्का आराम मिला लेकिन कुछ भी खाने पर उल्टियाँ हो ही रही थीं तो उन्होंने अल्ट्रासाउण्ड के लिए बोला मैंने मऊ में अल्ट्रासाउण्ड करवाया और डॉ.पी.एल. गुप्ता को दिखाया उन्होंने सीटी स्केन भी करवाया और फिर अपेडिक्स की समस्या बताई। १०-१२ दिन इलाज चला लेकिन कोई आराम नहीं मिला तो मैंने वाराणसी के डॉ. हिमांशु को दिखाया, तो उन्होंने कुछ खून की जाँचें करवायीं, जाँच आने पर उसमें क्रिटनीन ११.७२ आया। उन्हें रिपोर्ट कुछ सही नहीं लगी तो लाल पैथोलॉजी में जाँच करवाने को कहा, मैंने वहाँ पर १ जुलाई २०२४ को जाँच करवायी तो जाँच में क्रिटनीन १४.८, यूरिया २१३.१, यूरिक एसिड ९.३, फास्फोरस ८.८ आया।

डॉ. हिमांशु बहुत हैरान हो गये और कहा कि तुरन्त डायलेसिस करवानी पड़ेगी। ये सब सुनकर हम लोग बहुत घबरा गये और घर आ गये। उसी समय मेरे एक रिश्तेदार ने आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़ा आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान है, यहाँ से लगातार किडनी रोगी ठीक हो रहे हैं आप यहाँ जायें।

मैं दूसरे दिन ३ जुलाई २०२४ को ही आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँच गया। वहाँ पर रजिस्ट्रेशन हुआ, कुछ जाँच हुयीं, उस समय जाँच में क्रिटनीन १२.१, यूरिया १८३.२, यूरिक एसिड ७.६, फास्फोरस ८.२ आया और हेमोग्लोबिन ११.१, सीआरपी ५७.३ आया।

मुझे ओपीडी में आचार्य डॉ. वाजपेयी जी के पास भेजा गया, उन्होंने सारी जाँचें देखीं और ४ सप्ताह की आवासीय चिकित्सा के लिए कहा, मैं भर्ती हो गया। उस समय मुझे इतनी कमजोरी थी कि बिना सहारे से मैं चल नहीं पा रहा था, मेरी चिकित्सा शुरू हुयी शष्टिकशालि पण्डि स्वेद, वस्ति, अभ्यंग, स्वेदन आदि। साथ ही दवाइयाँ और परहेजी खान-पान। मुझे २-३ दिन में ही आराम मिलना शुरू हो गया और बहुत तेजी से यूरिया, क्रिटनीन घटने लगा। डॉक्टर भी मेरी रिपोर्ट देखकर प्रसन्न थे। २ सप्ताह में मेरी सारी जाँचें नार्मल आ गयीं।

२४ जुलाई २०२४ की जाँच में क्रिटनीन १.२, यूरिया २४.५, फास्फोरस ३.८, सीआरपी ११.४ आ गया।

मेरी सारी जाँचें नार्मल हो गयीं, मैं खूब चलने-फिरने लगा, खाने-पीने भी लगा। इस चिकित्सा संस्थान का वातावरण पूरा धार्मिक है। डॉक्टर साहब इतने बड़े डॉक्टर होते हुए भी पूरे सन्यासी और अच्छे तपस्वी हैं। मैंने देखा कि यहाँ कम-अधिक सभी को लाभ होता है।

मेरा वीडियो भी Ayushgram chikitsalay, Chitrakoot के यू-ट्यूब चैनल पर पड़ा है। उसे भी देखना चाहिए। मेरी बात सभी जगह पहुँचायी जाय ताकि मेरे जैसे पीड़ित कोई अन्य भी लाभ उठा सकें।

अजय कुमार गुप्ता
मेदनीपुर (ताड़ीघाट), गाजीपुर (उ.प्र.) २३२३३२
मोबा.नं.- ६३८६८३९१४१
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हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका
अंक -3 पृष्ठ 6-9 मार्च 2024

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आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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