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यह लेख बचा सकता है किडनी फेल्योर होने से।

हम चाहते हैं कि देश के सभी आयुष चिकित्सक ऐसे रोगों का सफलता पूर्वक उपचार करें।
डायलेसिस छुड़ाने और किडनी रोगियों को स्वस्थ करने का लगातार रहा रिकार्ड

जब २९ साल के होनहार और परिश्रमी युवक को २ डायलेसिस के बाद डॉक्टर उसके पिता से यह कह दे कि या तो जिन्दगी भर डायलेसिस कराओ या किडनी ट्रान्सप्लाण्ट कराओ, तो परिवार के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी न।

‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट विगत कई वर्षों से किडनी रोगियों के लिए आरोग्य तीर्थ बना हुआ है।

भारत का दुर्भाग्य है कि सरकार एलोपैथ चिकित्सा को तो सब तक पहुँचाने हेतु अस्पताल/कॉलेज बना रही है पर भारत की प्रभावशाली वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद को ऐसा नहीं बढ़ा रही जिससे जन-जन को प्रभावशाली और प्राणरक्षक आयुर्वेद चिकित्सा उपलब्ध हो सके। परिणाम यह है कि मानवता कराह रही है, लोग रोग के साथ-साथ इलाज की प्रक्रियाओं से बहुत कष्ट उठा रहे हैं।

हम इस लेख के माध्यम से आप सभी से अनुरोध करते हैं कि सरकार से देश की वैदिक चिकित्सा को बढ़ाने की ऐसी माँग करें ताकि जन-जन को इसका लाभ मिल सके।

यह महर्षि चरक की देवव्यपाश्रय, युक्तिव्यपाश्रय, सत्त्वावजय चिकित्सा के द्वारा लगातार डायलिसिस छुड़ाने और रोगियों को निरोग कर उन्हें एक अच्छी जिन्दगी देने का लगातार रिकार्ड बनाता आया है। बशर्ते ट्रीटमेण्ट या सिन्थेटिक दवाओं को खाते-खाते रोगी अपनी रोग से लड़ने की क्षमता (इम्युनिटी) को ध्वस्त न कर चुका हो तथा रोगी में अध्यात्म, योग, साधना को जीवन में उतारने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो क्योंकि इसके बिना आयुर्वेद चिकित्सा अधूरी है।

हम कभी भी अखबारी विज्ञापन के पक्ष में नहीं रहे, न ही संस्था के पास ऐसा बजट है, पर अब हमारी बाध्यता यह हो गयी है कि लोकहित, मानवता के हित में कि ऐसे अनुसंधानों, प्रयोगानुभवों को वैदिक चिकित्सा के प्रभाव, हमारी आयुर्वेद साधना और परिणाम को आप तक पहुँचायें ताकि अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें।

२४ सितम्बर २०२४ को कोटरा, मकरन्दपुर घाटमपुर, कानपुर से श्री सौरभ अवस्थी उम्र २९ को उसके परिवारीजन लेकर आयुष ग्राम चित्रकूट आये। अपना क्रम आने पर ओपीडी में आये। उसके पिता और रिश्तेदारों ने बताया कि हम गोपालपुर, कानपुर में २० सालों से रह रहे हैं।

  • इनका नमकीन का बहुत अच्छा व्यापार था।
  • अचानक बुखार आने लगा, ब्लड कम होने लगा, कमजोरी लगने लगी तो पहले वहीं स्थानीय डॉक्टर को दिखाया।
  • फिर वैदिक हॉस्पिटल कानपुर गये, वहाँ जाँच हुयी तो बताया आपकी किडनी फेल हो गयी, क्रिटनीन ८.४ आया।
  • वहाँ ब्लड चढ़ा, दो बार डायलिसिस की और कहा या तो किडनी ट्रान्सप्लाण्ट करायें या जब तक जिन्दगी तब तक डायलेसिस करायें।

तभी हमारे गाँव के एक व्यक्ति ने ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट के बारे में बताया और कहा कि आप यहाँ जाइये और जब तक वहाँ डॉ॰ साहब कहें वहाँ रुकिए, चिकित्सा लीजिए, आपकी डायलेसिस छूटेगी। इतना कहकर सौरभ के घर के लोग चुप हो गये।

तब हमने रोगी का प्रकृति परीक्षण किया और माहौल को थोड़ा हँसी युक्त बनाते हुए रोगी से पूछा कि यदि आप नमकीन बनाते हैं तो नमकीन खाते भी बहुत रहे होंगे। उसने कहा हाँ कर शिर हिलाया।

अब हमने रोग की सम्प्राप्ति विनिश्चय की-

ग्राम्याहार 👉(कार्य व्यापार का) लोभ 👉 वात, पित्त वृद्धि 👉 अग्नि असंतुलन मेदोवह स्रोतस् दुष्टि 👉 वपावहन और वस्ति स्थान में ‘ख’ वैगुण्य 👉 वृक्कसंकोच (Kidney Shriking) 👉 वृक्कामयता (Renal fail-ure) 👉 विजातीय तत्त्व *(Uria, Creatinine, Uric Acid) का बाहर न निकलना, परिणामत: अनेकों उपद्रव।

यदि हम विश्व के महान् प्राच्य चिकित्सा वैज्ञानिक चरक के रसायनाध्याय के ‘प्राणकामीय रसायन पाद’ को पढ़ें तो एक बार दांतों के तले उँगली दबानी पड़ेगी कि हमारे ऋषियों का कितना ज्ञान उन्नत था, पर दुर्भाग्य है कि हम इसका लाभ नहीं उठा रहे।

वे ऐसा रोगी होने और अपनी दुर्दशामय होने के एक प्रसंग को लिखते हैं-

‘‘सर्वे शरीर दोषा भवन्ति ग्राम्याहारदम्ललवण कटुक क्षार शुष्कशाक मांसतिल पललपिष्टान्नभोजिनां विरुढनवशूक शमीधान्य विरुद्धासात्म्य रुक्षक्षाराभिष्यन्दिभोजिनां क्लिन्नगुरुपूतिपर्युषित भोजिनां विषमाध्यशनप्रायाणां दिवास्वप्न स्त्रीमद्यनित्यानां विषमाति व्यायामसंक्षोभित शरीराणां भय क्रोध शोक लोभ मोहायासबहुलानाम् अति निमित्तं हि शिथिलीभवन्ति मांसानि (परिणामत: क्रिटनीन विषोत्त्पत्तिर्भवति), विमुच्यन्ते सन्धय:, विदह्यते रक्तं विष्यन्दते चानल्पं मेद:, न संधीयतेऽस्थिषु मज्जा, शुक्रं न प्रवर्तते क्षयमुपैत्योज:, स एवम्भूतो ग्लामति, सीदति, निद्रातन्द्रालस्य समन्वितो निरुत्सह: श्वसिति, असमर्थश्चेष्टानां।
शारीरमानसीनां नष्टस्मृतिबुद्धिच्छायो रोगाणामधिष्ठानभूतो न सर्वमायुरवाप्नोति।।

चरक चि॰ रसायना॰ प्राणकामीय॰ १/२/३

अर्थात् सभी शारीरिक विकार, असभ्य, अशिष्ट, अवैज्ञानिक तरीके के खान-पान करने से होते हैं। जो व्यक्ति अधिकांशत: अम्ल, नमकीन, कड़वे, क्षारीय पदार्थ, सूखे शाक, सूखा मांस, तिल, तिलकुट, उड़द आदि पिट्ठी से बनाये गये पकवान खाते हैं, अंकुरित अनाज, नूतन अनाज, शुष्क धान्य, शमी धान्य, परस्पर विरुद्ध खान-पान, शरीर को असात्म्य (Disloyalty), रूखे, क्षारप्रधान, जलीयांश बढ़ाने वाले (सलाद आदि) तथा सड़े-गले, दुर्गन्धित, बासी (ब्रेड, बिस्किट आदि) विषम आहार करते हैं, दिन में सोते हैं, अधिक मैथुन करते हैं, नशा करते हैं, अधिक चलना, चढ़ना, उतरना, अति व्यायाम आदि करते हैं इससे सारा शरीर संक्षुब्ध होने लगता है, उधर मन को विकारी बनाने वाले कारण भय, क्रोध, शोक, लोभ, मोह, के चंगुल में भी वह हो जाता है, शारीरिक और मानसिक श्रम के परिणाम स्वरूप वात, पित्त, कफ आदि प्रकुपित हो जाते हैं जिससे मांसपेशियों का चयापचय विकृत होता है।

आचार्य चरक आगे लिखते हैं कि धीरे-धीरे संधि बन्धन च्युत होने गलते हैं, रक्त में विदाह होने लगता है, मेदोधातु (Fat) असंतुलित होने लगती है, अस्थि और मज्जा का कार्य विकृत हो जाता है, पुरुषों में शुक्रधातु (और नारियों में आर्तव की) प्रवृत्ति नहीं होती, ओजोधातु का क्षय हो जाता है।

फिर व्यक्ति में ग्लानि (उत्साहहीनता) उत्पन्न होती है, शरीर में वेदना होती है, शारीरिक अस्तता-व्यस्तता से युक्त व्यक्ति अब (ऐसे रोगों से घिर जाता है कि) जीवन की अंतिम साँसे जैसे लेने लगता है, शारीरिक और मानसिक चेष्टाओं में असमर्थ हो जाता है, स्मृति बुद्धि और कान्ति नष्ट हो जाती है, वह सभी प्रकार के शारीरिक रोगों का घर बन जाता है।

उक्त विवरण पढ़ने से कितनी स्पष्ट बात सामने आ रही है कि आचार्य चरक उक्त सभी दोषवर्धक कारणों के फलस्वरूप मांसपेशियों की स्थिति की विकृत बताते हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों ने जब क्रिटनीन विष को खोजा तो यही पाया कि यह मांसपेशियों के चयापचय का परिणामज विष ही तो है।

इसके अलावा आचार्य चरक ने उक्त चर्चा में मज्जा के कार्य प्रभावित होने, पुरुषों में शुक्र (महिलाओं में आर्तव) के प्रभावित होने का भी उल्लेख किया, उत्साहहीनता और रक्त में विदाह होने, शारीरिक, मानसिक चेष्टाओं के विकृत होने तथा सभी तरह की शारीरिक बीमारियों का घर होने की भी बात कही।

सौरभ अवस्थी जैसे उदाहरण इन्हीं गल्तियों का परिणाम है। अब सौरभ के खून की जाँच करायी तो यूरिया १०७.४, क्रिटनीन ८.२, यूरिक एसिड ९.७ तथा मूत्र में प्रोटीन ४+ में आया।

हमने कहा कि बिगाड़ तो बहुत हो गया पर परेशान न हों डायलिसिस छूटेगी और सुपरिणाम आएगा। हमने ५ सप्ताह की आवासीय चिकित्सा के लिए लिखा। उस समय ‘आयुष ग्राम’ में बहुत भीड़ थी किसी तरह रूम नं.-४ दिया गया और चिकित्सा प्रारम्भ की गयी।

आचार्य चरक स्पष्ट कहते हैं कि ऐसे रोगी केवल दवाइयों से ठीक नहीं हो सकते वे कहते हैं, ऐसे रोगी में रसायन चिकित्सा उपयोगी है किन्तु-

तपसा ब्रह्मचर्येण ध्यानेन प्रशमेन च।
रसायनविधानेन कालयुत्तेâन चायुषा।
स्थिता महर्षय: पूर्व नहि किंचिदरसायनम्।
ग्राम्यानामन्यकर्माणां सिध्यत्यप्रयतात्मनाम्।।

च.चि. १/३/७-८।।

तपस्या, ब्रह्मचर्य, ध्यान (जप), इन्द्रिय को वश में रखकर रसायन चिकित्सा का विधिवत् उपयोग करने से पूर्ण आयु को प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य चरक आगे कहते हैं अस्त-व्यस्त जीवनशैली या घरेलू कार्य या अन्य कार्यों में लिप्त रहते हुए तथा ऐसे लोग जिनकी और इन्द्रियाँ मन वश में नहीं है उन्हें समुचित लाभ नहीं मिलता।

आचार्य चरक आगे एक महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि-

यथास्थूलमनिर्वाह्य दोषाञ्छारीर मानसान्।
रसायनगुणैर्जन्तुर्युज्यते न कदाचन।
योगा ह्यायु: प्रकर्षाणां जरारोग निवर्हणा:।
मन: शरीर शुद्धानां सिध्यन्ति प्रयतात्मनाम्।।
तदेतन्न भवेद् वाच्यं सर्वमेव हतात्मसु।
अरुजेभ्योऽद्विजातिभ्य: सुश्रूषा येषु नास्ति च।।

च॰चि॰ रसा॰ १/४/३६-३८।।

अर्थात् जो व्यक्ति पंचकर्म द्वारा शारीरिक दोषों/विकारों और देवव्यपाश्रय, सत्त्वावजय चिकित्सा, योग, प्राणायाम, जप, ध्यान, सत्य, सात्विक आचरण, ब्रह्मचर्य पालन, इन्द्रिय संयम, मानसिक चंचलता और दोषों का निराकरण किये बिना आयुवर्धक, रोगनाशक, जरा नाशक रसायनों का सेवन करता है तो उसे सम्पूर्णता से लाभ नहीं मिलता।

मानसिक रूप से स्वस्थ, क्रोध, लोभ, चंचलता, अधीरता, काम, अशान्ति, लालसा, तृष्णा, अति निद्रा, प्रमाद से मुक्त तथा शारीरिक दोषों से निवृत्त और मन तथा इन्द्रियों को वश में रखकर संयमित जीवन जीने वाले को ही जरा रोग नाशक और आयुवर्धक रसायनों का लाभ मिलता है।

महावैज्ञानिक चरक ने यहाँ तक कह दिया कि जो मानसिक और शारीरिक दोषों से युक्त हो तथा संस्कारवान् न हो, जो गुरुजनों, पूज्यजनों, अपने से बड़ों की सुनते न हों उनको ऐसी चिकित्सा उपलब्ध कराना तो दूर बताना तक नहीं चाहिए। पश्चात् सौरभ अवस्थी की चिकित्सा प्रारम्भ की गयी। सौरभ के भाई गौरव अवस्थी ‘आर्यावत्र्त बैंक’ लखीमपुर खीरी में शियर हैं वे सौरभ के साथ रह गये।

चिकित्सा व्यवस्था क्रम-

आमपाचन हेतु अखिलदोषजहर कषाय १०-१० मि.ली. खाली पेट भोजन के ३० मिनट पूर्व।

शोधन पंचकर्म चिकित्सा-

स्वेदन फिर निर्गुण्यादि कषाय से निरूह वस्ति।

बता दें कि आयुष ग्राम (ट्रस्ट) से सटे जंगल में निर्गुण्डी का विशाल वन है। इससे ताजी औषधि मिल जाती है। ग्रहणीमिहिर तैल की अनुवासन वस्ति। इसके अलावा सर्वांग वाष्प स्वेद, शिरोधारा, चक्रवस्ति, कोलकुलत्थादि चूर्ण से रुक्ष अभ्यंग, शंखपुष्पी तैल का सर्वांग परिषेक।

औषधि व्यवस्था पत्र-

कासनी मण्डूकपर्णी, मेषशृंगी और त्रिशूल बूटी घनसत्व ५००-५०० मि.ग्रा., रौप्य, अभ्रक, स्वर्णमाक्षिक, शु. गन्धक, शिलाजीत, कांत लौह, वंग भस्म, मुक्ता भस्म, पारद भस्म ३०-३० मि.ग्रा. तथा स्वर्ण भस्म ६० मि.ग्रा. सभी घोंटकर १ मात्रा १²२।

आँवला घनसत्व ५०० मि.ग्रा., बेर पत्थर भस्म २५० मि.ग्रा., मु.शु.पिष्टी २५० और हेमवती १२५ मि.ग्रा. गोदुग्ध की ५ भावना देकर निर्मित टेबलेट। दोपहर व रात में भोजन के पूर्व।

मिश्रेयादि कषाय (चक्रदत्त) १०-१० मि.ली. बराबर जल मिलाकर दिन में २ बार।

प्रात: ४ बजे जागरण, शौच स्नानादि से निवृत्ति के पश्चात् और ६ बजे योग साधना में उपस्थिति। योग साधना में १ घण्टे तक राम नाम का जप।

क्योंकि आचार्य चरक सत्यवादिता, ब्रह्मचर्य पालन, क्रोध, चिड़चिड़ापन राहित्यता, जप, शौचाचार में अद्भुत औषधीय और रसायन गुण बताये हैं।

५ दिन की चिकित्सा के बाद जब रक्त परीक्षण हुआ तो सौरभ अवस्थी में यूरिया १०७.४ से घटकर १०२.२, क्रिटनीन ८.२ से घटकर ७.७, यूरिक एसिड ९.७ से घटकर ८.९, फास्फोरस ५.९ से घटकर ५.६ तथा मूत्र में प्रोटीन ४+ से घटकर ३+ पर आ गया।

रिपोर्ट देखकर बहुत प्रसन्नता हुयी क्योंकि सौरभ को प्रथम बार में ही लाभ हो गया जबकि डायलिसिस बन्द कराते अधिकांश रोगियों का यूरिया, क्रिटनीन पहले बढ़ता ही है अब लगा कि सौरभ की डायलिसिस बन्द हो जाएगी। हमने गले में छेद कर डाली उसकी नेक लाइन निकालने की सलाह दी। रोगी और उसके परिवार वाले बहुत प्रसन्न। चिकित्सा चलती रही, १ अक्टूबर २०२४ को जब जाँच करायी तो यूरिया १०२.२ से बढ़कर १३३.९, क्रिटनीन ७.७ से बढ़कर ८.३ तथा यूरिक एसिड ९.७ से बढ़कर १०.३ हो गया।

चिकित्सा में थोड़ा परिवर्तन किया। इधर सौरभ में देवव्यपाश्रय चिकित्सा और आचार रसायन के प्रति ऐसी लगन बढ़ी कि वह जब भी समय मिलता अपने कमरे में जप योग में लग जाता। आयुष ग्राम के चिकित्सक और अनुचिकित्सक उसके समर्पण और लगन को देखकर बहुत प्रसन्न होते।

अब ९ अक्टूबर २०२४ को जाँच करायी तो यूरिया १३३.९ से घटकर ११९.३, क्रिटनीन ८.३ से घटकर ७.६ और यूरिक एसिड १०.३ से घटकर ८.९ आ गया।

जिस समय उसका यूरिक एसिड बढ़ा तो अंगूठे में दर्द बढ़ गया, उसके कोई पेन किलर न देकर केवल लेप लगाया गया।

१६ अक्टूबर २०२४ की जाँच में यूरिया १०५.५, क्रिटनीन ६.४, यूरिक एसिड ८.२ आ गया।

२३ अक्टूबर २०२४ की जाँच में यूरिया ९५.६, क्रिटनीन ५.७ तथा यूरिक एसिड ७.८।

अब सौरभ और उसके परिवारीजन बहुत प्रसन्न तथा अद्भुत आत्मविश्वास की वृद्धि।

अब सौरभ ने आयुष ग्रामेश्वर महादेव में रूद्राभिषेक किया और उसी दिन उसे विशेष जप करने का निर्देश दिया। आचार्य चरक का निर्देश है ‘जप शौच परं नित्यम्’।

२९ अक्टूबर २०२४ को यूरिया ७९.९, क्रिटनीन ४.९, यूरिक एसिड ७.५ हो गया। कैल्शियम की स्थिति जो ८.९ था वह ९.८ हो गया। इससे अच्छा और क्या हो सकता है।

अब सौरभ को डिस्चार्ज कर दिया गया तथा घर में यही सब नियम पालन करने का निर्देश।

जाते-जाते सौरभ की वार्ता

मैं सौरभ अवस्थी उम्र २९, मैं कोटरा, मकरन्दपुर घाटमपुर, कानपुर (उ.प्र.) से हूँ। मुझे सितम्बर २०२४ को बुखार आने लगा, ब्लड कम हो गया, कमजोरी बहुत लग रही थी, वहीं गोपाल नगर, कानपुर के एक फिजीशियन को दिखाया कोई आराम नहीं मिला।

फिर मैंने वैदिक हॉस्पिटल कानपुर में दिखाया, वहाँ पर सारी जाँचें हुयीं डॉक्टर ने कहा कि किडनी का साइज छोटा हो गया है और जाँच में क्रिटनीन ८.४ था, ३ यूनिट ब्लड भी चढ़ा, २ डायलेसिस भी हुयीं, मेरे पिता जी से डॉक्टर ने कहा कि किडनी ट्रांसप्लाण्ट करायें नहीं तो जिन्दगी भर डायलेसिस कराओ। मेरे पिता जी ये सब सुनकर तुरन्त डिस्चार्ज करवाया।

मेरे गाँव के एक व्यक्ति ने आयुष ग्राम चित्रकूट का पता बताया और कहा कि यह आयुर्वेद का समृद्ध हॉस्पिटल है, पूरी व्यवस्था है, आप यहाँ जायें। मुझे भी यहीं से लाभ मिला।

मैं २४ सितम्बर २०२४ को आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचा, पर्चा बना, कुछ जाँचें हुयीं, जाँच में क्रिटनीन ८.३, आया, उस समय इतनी कमजोरी थी कि अपने से चला तक नहीं जा रहा था, भूख खत्म थी, डायलेसिस व ट्रांसप्लाण्ट के नाम पर मैं घबराया था।

पहले यहाँ दूसरे डॉक्टर्स ने केसहिस्ट्री ली फिर आचार्य डॉ. वाजपेयी जी की ओपीडी में भेजा गया, उन्होंने देखा और कहा आप बिल्कुल परेशान न हों, ५ सप्ताह आवासीय चिकित्सा लीजिए, आयुर्वेद के अनुसार अध्यात्म में जुड़िये भगवान् अवश्य पूरी सहायता करेंगे और आपकी डायलेसिस छूट जायेगी। मैं खुश हो गया और मन में आशा हुयी कि अब मैं ठीक हो जाऊँगा।

मेरी चिकित्सा शुरू हुयी, मुझे ४ दिनों में आराम होने लगा, चलने-फिरने लगा, भूख भी लगने लगी और जाँचें भी पॉजिटिव आने लगीं।

आज मुझे ३५ दिन पूरे हो रहे हैं, न तो मुझे डायलेसिस की जरूरत पड़ी, न ही कोई समस्या आई, मेरी एलोपैथ दवायें भी सारी बन्द हो हो गयीं। बीपी नार्मल रहने लगा।

मैंने तो आशा ही छोड़ दी थी, अब ज्यादा जी पाऊँगा। लेकिन आज मैं पूरे विश्वास के साथ सभी से कहूँगा कि आप आयुष ग्राम पहुँचें, आयुर्वेद अपनायें नया जीवन मिलेगा और मेरी बात सभी तक पहुँचायें। मेरे जैसे अनेकों रोगी जो वहाँ की विधि का पालन करते हैं वे ठीक हो रहे हैं।

सौरभ अवस्थी,
कोटरा, मकरन्दपुर (घाटमपुर), कानपुर देहात (उ.प्र.)
मोबा. नं.- ९६९६१८५३०४
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सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका
अंक -3 पृष्ठ 6-9 मार्च 2024

आयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
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चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

प्रधान सम्पादक

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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