शोध आधारित सफल चिकित्सा-
टाइफाइड का बढ़िया इलाज टमाटर से!!
बदलते मौसम में टाइफाइड बुखार से पीड़ितों की संख्या बढ़ने लगती है। एक अध्ययन में बताया गया है कि टाइफाइड के टीके केवल ५०-८०% ही सफल हैं।
टाइफाइड से अग्न्याशय, आमाशय, आँतें और मस्तिष्क तक प्रभावित होता है। इसके अलावा किडनी और हार्ट भी प्रभावित होते हैं। टाइफाइड की उत्पत्ति साल्मोनेला टाइफी बैक्टेरिया से होती है। आयुर्वेद में इसे मन्थर ज्वर या आंत्रिक ज्वर कहा गया है। खाद्य पदार्थों और तरल चीजों के माध्यम से यह बैक्टेरिया आपके पेट में प्रवेश करता है। बस! संक्रमण शुरू।
संक्रमण के १ से २ सप्ताह में टाइफाइड के लक्षण दिखते हैं जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है वैसे-वैसे लक्षण गंभीर होने लगते हैं। सही इलाज न मिलने या इलाज में देरी होने से कई तरह की दूसरी परेशानियाँ आ जाती है। इस बुखार के मुख्य लक्षण है- ठण्ड के साथ तेज बुखार, सिर और पेट में गंभीर दर्द, शरीर की कमजोरी, भूख कम लगना, स्किन पर गहरे रंग के रेशेज, उल्टी, दस्त और मतली बुखार १०२ से १०४ डिग्री तक रहना, पेट की खराबी, कब्ज।
टाइफाइड बुखार से बचाव के लिए ध्यान रखना चाहिए कि अपने खाने पीने की आदतों के बारे में सावधान रहें। कुछ भी खाने-पीने के पहले हाथ धोना न भूलें। सलाद खाने से बचना चाहिए, नल का पानी पीने से बचें, गली, फुटपाथ, ठेले में बिकने वाले खाद्य पदार्थ न खायें। मांसाहार कतई न करें। हमेशा उबला हुआ पानी ही पसन्द करें क्योंकि यह रोगाणु मुक्त होता है, अपने चेहरे को छूने से बचना चाहिए तथा हाथ बार-बार धोयें।
इस रोग से बचाव के लिए अपने खान-पान और जीवनशैली पर ध्यान देना चाहिए। जैसा कि ऊपर बताया गया कि इस बुखार का बैक्टेरिया खाद्य पदार्थों के जरिए शरीर में पहुँचता है। दूषित पानी और दूषित भोजन का सेवन करने से भी टाइफाइड का संक्रमण हो सकता है, इसलिए निर्दोष पानी ही सेवन किया जाए, बाहर का भोजन कतई न लिया जाय। आजकल बोतल बन्द पानी भी नकली आ रहा है उस पर भी बहुत सावधानी रखी जाय।
यह बीमारी अधिकतर विकासशील देशों में होती है। हालांकि अमेरिका में भी यह बीमारी पायी जाती है। एक अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में लगभग २१ मिलियन टाइफाइड के मामले आते हैं। बच्चों, शिशुओं और युवा वयस्कों में टाइफाइड का खतरा अधिक होता है। अस्वच्छ रहने की दशा में, सफाई की घटिया की व्यवस्था, प्रभावित क्षेत्रों में बार-बार जाना, इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति के स्पर्श आने से इस बीमारी का खतरा विशेष रहता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष टाइफाइड से हर साल १२८००० से १६१००० लोगों की मौत हो जाती हैं।
अमेरिका के स्टैन फोर्ड विश्वविद्यालय के एक संक्रमिक रोग विशेषज्ञ प्रमुख लेखक एंड्रयूज ने बहुत महत्वपूर्ण बात बतायी है कि साल्मोनेला टाइफी के बीच रोगाणुरोधी प्रतिरोध का बार-बार अधिग्रहण और सीमाओं के पार फैलना चिंताजनक है। हमारे पास बहुत कम एण्टीबायोटिक बचे हैं जो टाइफाइड के खिलाफ प्रभावी हैं। इसका मूल कारण यह रहा है कि लोगों ने बिना सोचे समझे एण्टीबायोटिक का अधिक उपयोग किया।
यद्यपि आयुर्वेद में टाइफाइड का बहुत ही सफल और हानिरहित उपचार है। आयुर्वेद से टाइफाइड ठीक होने के बाद फिर इसके लौटने की संभावना भी नहीं रह जाती। मधुरान्तक वटी, वृ. कस्तूरी भैरव रस, मुक्तापिष्टी, खृबकलां क्वाथ, सूतशेखर रस, सौभाग्य वटी, वसंतमालती स्वर्ण, संशमनी वटी, ब्राह्मी वटी स्वर्ण, योगेन्द्ररस, रक्तपित्त कुलकण्डन रस, चन्दनादि क्वाथ, सितोपलादि चूर्ण उपयोगी है।
आयुष ग्राम चिकित्सालय में बिगड़े से बिगड़े टाइफाइड के रोगी आते हैं और उन्हें जड़ से रोगमुक्ति मिलती है।
वैज्ञानिक परेशान हैं कि एण्टीबायोटिक काम नहीं कर रहे, लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र खराब हो गया है। ऐसे में अब उनका ध्यान प्राकृतिक उपायों और साधनों पर गया। तो उन्होंने पाया कि टमाटर का जूस (रस) साल्मोनेला टाइफी जैसे हानिकारक बैक्टेरिया का खात्मा कर सकता है। हम फिर से बताते चलें कि यही बैक्टेरिया टाइफाइड बुखार की वजह बनता है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में यह भी पाया कि टमाटर का रस पाचन तंत्र और यूरीनरी ट्रैक्ट को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक बैक्टेरिया से भी लड़ने की क्षमता रखता है। वैज्ञानिक भी मान गये कि टमाटर में कमाल के एण्टीऑक्सीडेंट और रोगाणुरोधी गुण होते हैं। गौरतलब है कि टमाटर के चामत्कारिक गुणों को उजागर करने वाले इस रिसर्च के परिणाम अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी के जर्नल स्पेक्ट्रम में प्रकाशित हुये हैं।
हालांकि इसमें मौजूद एण्टीऑक्सीडेंट गुणों के विपरीत इसकी रोगाणुरोधी क्षमताओं का अब तक पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है। यही वजह है कि वैज्ञानिक इसके इन गुणों को अधिक से अधिक समझने की कोशिश कर रहे हैं। अपने इस अध्ययन में इन शोधकर्ताओं ने टमाटर के रस और इसके मौजूद पेप्टाइड्स जिसे टमाटर व्युत्पन्न रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स के नाम से जाना है में रोगाणुरोधी गुणों की जाँच की। उन्होंने यह समझने का प्रयास किया कि यह पेप्टाइड्स टाइफाइड बुखार के लिए जिम्मेदार बैक्टेरिया साल्मोनल टाइफी के खिलाफ कितना असरदार है। कार्नेल विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी और इन्यूनोलॉजी विभाग से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकत्र्ता डॉक्टर जियोंगमिन सॉन्ग का कहना है कि जब हमें यह पता चल गया कि टमाटर रस में मौजूद जीवाणुरोधी गुण साल्मोनेला टाइफी के खिलाफ कारगर हैं पुष्टि हो गयी तो उन्होंने इसके लिए जिम्मेदार रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स का पता लगाने के लिए टमाटर की आनुवंशिक संरचना की जाँच की। उन्हें पता चला कि रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स बहुत छोटे प्रोटीन हैं जो जीवाणु की झिल्ली को खराब कर देते हैं यह झिल्ली रोगजनकों को घेरने वाली एक सुरक्षात्मक परत होती है। शोधकर्ताओं को चार संभावित रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स में से दो का पता चला जो परीक्षण के दौरान साल्मोनेला टाइफी के खिलाफ प्रभावी सिद्ध हुए। जाँच में सामने आया कि टमाटर का रस उन दूसरे आक्रमक वैरिएंट के खिलाफ भी कारगर है। उन्होंने अध्ययन में यह भी पाया कि टमाटर का रस आंत में पाय जाने वाले अन्य रोगजनकों के खिलाफ भी अच्छी तरह से काम करता है जो लोगों के पाचन तंत्र और यूरीनरी ट्रैक्ट को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
यद्यपि वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद में टमाटर को ज्वर में पहले से ही उपयोगी बताया गया है। आपके संज्ञान में ला दें कि टमाटर को आयुर्वेद में लाल बैगन माना गया है, द्रव्यगुण के वैज्ञानिक आचार्य पी.वी. शर्मा लिखते हैं-
ज्ञेयं तु रक्तवृन्ताकं वृन्ताकसदृशं गुणै:।
जीवनीयं विशेषेण बल्यं च परिकीर्तितम्।।
अर्थात् रक्तवृन्ताक (लाल बैगन) में बैगन के समान ही गुण होते हैं इसके फल जीवनीय और बलवर्धक हैं। अब हम बैगन को पढ़ें तो भावप्रकाशकार सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखते हैं-
वृन्ताकं स्वादु तीक्ष्णोष्णं कटुपाकमपित्तलम्।
ज्वरवातलासघ्नं दीपनं शुक्रलं लघु।
तद्वालं कफपित्तघ्नं वृद्धं पित्तकरं लघु।।(पू.ख. शाक वर्ग प्रकरण-५।।)
बैगन मधुर, तीक्ष्ण, गरम, पाक में चरपरा, पित्त कारक नहीं, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक, पचने में हल्का, ज्वर, वात, कफ शामक है। बाल्यावस्था का बैगन कफ और पित्त को मिटाने वाला तथा बूढ़ा बैगन पित्त बढ़ाता है।
स्पष्ट हो गया न कि बैगन बहुत गुणकारी है, इसमें ज्वर को मिटाने और इम्युनिटी बढ़ाने का गुण भारतीय मनीषियों ने पहले ही खोज रखा था।
दुर्भाग्य यह रहा कि हमने अज्ञानता वश इसे भोजन बना लिया और सब्जी को ऐसा बनाना शुरू कर दिया जिससे इसके सभी औषधीय गुण नष्ट हो जाते हैं और यह कुपथ्य बन जाता है। आगे कभी इस पर चर्चा करेंगे।
टाइफाइड रोगी को देशी, लाल टमाटर (आर्गेनिक) का रस २५ से ५० मि.ली. तक अदरक रस के साथ दिन में २-३ बार सेवन कराना चाहिए। सभी प्रकार से पथ्य पालन करना चाहिए। आहार में फल, सूप ही देना चाहिए और रोगी को पूर्ण आराम भी।
टमाटर का रस सेवन के १ घण्टा पूर्व व बाद तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए। बुखार तेज हो तो पानी की पट्टी रखना चाहिए, महासुदर्शनघन वटी २-२ गोली भी दिन में २-३ बार देना चाहिए। इसके अलावा मधुरान्तक वटी, मुक्तापिष्टी भी दिया जाना चाहिए यह सब वैद्यकीय निगरानी में ही हो।
हमें आशा है कि इस लेख से आप टाइफाइड बुखार के चक्र को तोड़ने में समर्थ होंगे वह भी बिना एण्टीबायोटिक के। ‘आयुष ग्राम’ में यह प्रयोग उत्साहवर्धक परिणाम मिल रहे हैं।
यदि हमारे देश में फिर से आयुर्वेद की परम्परायें स्थापित हो जाय तो समझो कि मानव पूर्व की तरह बलवान्, आरोग्यवान्, सद्विचारवान् हो जाएगा।
हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।
सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्
"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिकाअंक -3 पृष्ठ 6-9 मार्च 2024
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आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
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