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जिनका मन काबू में नहीं उसे योग की प्राप्ति नहीं: आचार्य डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी

आज दिनांक- ०१.०८.२०२४ को धन्वन्तरि पीठ : आयुष ग्राम (ट्रस्ट) सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग), चित्रकूट में ट्रस्ट के आयुष ग्राम चिकित्सालय में ए.के.एस. यूनिवर्सिटी, सतना (म.प्र.) एम.ए. (योग) के छात्र/छात्राओं ने योग का एक माह का आवासीय कर्माभ्यास प्रशिक्षण कुशलता पूर्वक सम्पन्न होने पर उनके लिए ससम्मान विदाई समारोह का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सतीशचन्द्र द्विवेदी पूर्व विक्रय कर आयुक्त, बाँदा रहे और अध्यक्षता आचार्य डॉ मदनगोपाल वाजपेयी ने की।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री सतीशचन्द्र द्विवेदी, पूर्व विक्रय कर आयुक्त, बाँदा ने कहा कि ए.के.एस. विश्वविद्यालय के योग के स्नातकोत्तर छात्राओं के प्रशिक्षण के लिए आयुष ग्राम ट्रस्ट वरदान है, यहाँ का वातावरण सात्विक और आयुर्वेदीय है। यहाँ आते ही नई ऊर्जा मिलती है। साथ ही, उन्होंने छात्र-छात्राओं को संदेश देते हुए कहा कि आप जीवन में चाहे जिस क्षेत्र में जायें उस क्षेत्र में सफलता के लिए पूर्ण समर्पण आवश्यक है। जब तक आप पूर्ण रूप से समर्पित होकर अपना सर्वश्रेष्ठ उस कार्य के लिए समर्पित नहीं करेंगे, तब तक उस क्षेत्र में सफलता मिल पाना सम्भव नहीं है।

आयुष ग्राम चिकित्सालय प्रमुख परिचारिका एवं योग प्रशिक्षिका कु. साधना लौहरिया ने बताया कि योग का अर्थ है जोड़ना। हमारा शरीर पंचतत्व से मिलकर बना है इसलिए योग से तात्पर्य स्वयं को पंचतत्वों से जोड़ना ही है। साधना जी ने आगे कहा कि हमारा शरीर और आहार दोनों ही पंचतत्वों से मिलकर बने हैं इसलिए हमें भोजन भूमि पर बैठकर पृथ्वीतत्व के सम्पर्क में रहकर करना चाहिए।

आयुष ग्राम गुरुकुलम् के साहित्याचार्य श्री रंजन प्रसाद शुक्ल जी ने अपने उद्बोधन में आदि कवि कालिदास के प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम् से शकुन्तला की विदाई के समय महर्षि कण्व की मन:स्थिति का उदाहरण देते हुए कहा कि विदाई का पल अत्यन्त भावुक कर देने वाला होता है जो कण्व जैसे महर्षि को भी भाव विह्वल कर देता है। इसलिए यह विदाई समारोह हम सभी के लिए भावुक कर देने वाला है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आयुष ग्राम के संस्थापक आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि

आयुर्वेद चिकित्सा में शरीर, इंद्रिय, मन आत्मा को लेकर चलता है इसके अनुबन्ध को ही आयु कहा गया है। यदि पूर्ण स्वास्थ्य चाहिए तो युक्त आहार, युक्त विहार, युक्त चेष्टायें, युक्त कर्म और युक्त सोना, जागना आवश्यक है।
चूँकि मन अत्यन्त चंचल होता है वह एक पल के लिए भी कहीं नहीं टिकता, इसलिए आयुर्वेद मन को ध्यान में रखकर चिकित्सा करता है। भगवान् ने भी गीता में बताया है कि योग की प्राप्ति तभी संभव है जब मन काबू में हो। मन को नियंत्रित करना चाहिए, मन को नियंत्रित करने के लिए दो ही साधन हैं अभ्यास और वैराग्य।
अभ्यास से तात्पर्य नियमित रूप से मन को एक स्थान या बिन्दु पर एकाग्र करना और वैराग्य से तात्पर्य इन्द्रियों के विषयों के प्रति अनिच्छा उत्पन्न करना। इसलिए इन साधनों के द्वारा मन का नियंत्रित करने पर ही योग की प्राप्ति संभव है।

उन्होंने आगे कहा कि आप लोग योग में परास्नातक हैं। आपके एक माह के प्रशिक्षण के दौरान हमारा प्रयास आपको योग को आत्मसात् कराना था। अब आप का दायित्व है कि चाहे जिस क्षेत्र को अपना कर्म क्षेत्र बनायें योग के माध्यम से अपनी चित्तवृत्तियों का निषेध करते हुए योगमय जीवन स्वयं व्यतीत करें और अपनों को भी इससे लाभान्वित करें।

ए.के.एस. यूनिवर्सिटी, सतना (म.प्र.) एम.ए. योग के छात्र/छात्राओं सुखदेव प्रजापति, अंकित चौबे, अनुराग पाण्डेय, अजय कुमार, कु. प्रांशु, कु. कल्पना सिंह, कु. सोनिया चौधरी, कु. प्राची साकेत, कु. रौनक मालिक, कु. पूनम साकेत आदि को एक माह का एम.ए. योग के प्रशिक्षण पूरा करने के बाद प्रमाण पत्र, रुद्राक्ष एवं रामचरितमानस की प्रति देकर उनको सम्मानित किया गया और इसके बाद आयुष ग्राम गुरुकुलम् के प्रधानाचार्य ने उनका आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम का समापन किया। कार्यक्रम का संचालन आयुष ग्राम गुरुकुलम् के आचार्य श्री भानुप्रताप वाजपेयी ने किया।

कार्यक्रम में डॉ. वेदप्रताप वाजपेयी, आलोक कुमार, गुरुकुल के प्रभारी प्रधानाचार्य शिवसागर सिंह उप प्रधानाचार्या सीमा, व आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर के समस्त आयुर्वेद नर्सिंग व फार्मेसी स्टॉफ शीलू पाण्डेय, साधना, शालू, चन्दा एवं गुरुकुलम् के छात्र मौजूद रहे।