Image

हम ऐसी चिकित्सा कर बचाएंगे और छुड़ाएंगे डायलिसिस से!!

  • महान् प्राच्य चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक का स्पष्ट निर्देश है कि प्राशम्यत्यौषधे पूर्वो दैवयुक्ति व्यपाश्रये (च. सू. 1/58) अर्थात् शारीरिक रोगों में दैवयुक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा का प्रयोग किया जाय।
  • दैवयुक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा की अनदेखी से ही चिकित्सा परिणाम अधूरे।
  • ‘आयुष ग्राम’ में दैवयुक्तिव्यपाश्रय दोनों चिकित्सा विधियों का भरपूर उपयोग। जिसके आश्चर्यजनक परिणाम आ रहे हैं।

हम लगातार यह लिखकर एक वैचारिक चिकित्सा क्रान्ति लाने का प्रयास करते रहेंगे कि भारतवासियों का कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि भारत में महान् वैज्ञानिक जीवनदायिनी वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद है, इसके बाद भी मानव लगातार गंभीर रोगों से पीड़ित हो रहा है, वर्तमान की चिकित्सा प्रणाली के जंजाल में ऐसा फंस रहा है कि फिर निकल ही नहीं पाता। जो सूझ-बूझ से काम लेता है उसके जीवन और स्वास्थ्य दोनों से सुरक्षित रहते हैं।

किडनी फेल्योर का एक ऐसा ही उदाहरण 24 सितम्बर 2024 को रवि भगोलीवाल उम्र 30, को लखनऊ से उनके माता-पिता ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट लाये। वह होनहार युवक यूपीएससी की तैयारी कर रहा था। केसहिस्ट्री में उसने बताया कि 2012 (18 साल की उम्र) में डायबिटीज हुयी। आगरा में डॉ. डी.के. हाजरा का 6 माह तक इलाज चला।

2015 में लखनऊ में सेवा हॉस्पिटल में गये, एक साल तक इंसुलिन चलायी पर आराम नहीं मिला।

2019 में लखनऊ के डॉ. अरुण पाण्डेय गोमती नगर में दिखाया उन्होंने टाइप-1 डायबिटीज बताई, 4 बार इंसुलिन शुरू कर दिया और आगे बायोप्सी के लिए कह दिया।

सितम्बर 2024 को दर्द हुआ तो जाँच करवाने पर पता चला कि ‘किडनी फेल्योर’ हो गया। यूरिया, क्रिटनीन बढ़ गया।

हम परेशान थे तभी मेरे मौसा जी डॉ.एस.एस. भटनागर और रिटा. डॉ.जी.एस. राजपूत फर्रूखाबाद ने हमें ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट के लिए प्रेरित किया। कहा यह उत्तर प्रदेश का सबसे श्रेष्ठ आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान है यहाँ से समस्या आपकी मिट सकती है।

रवि भगोलीवाल की माँ ने बताया कि मेरे बेटे का वजन 65 किलो ग्राम से 48 किलो ग्राम हो गया है। हमने सारी रिपोर्टें देखीं और यहाँ भी रक्त जाँच करायी तो यूरिया 51.8, क्रिटनीन 2.3, मूत्र में ग्लूकोज 4± और प्रोटीन 2± में था।

प्रकृति परीक्षण के बाद हमने आश्वासन दिया कि आप परेशान न हों शास्त्रीय मेथेड से देवयुक्तिव्यप्राश्रय चिकित्सा अपनायें पूरी सफलता मिलेगी।

2 सप्ताह के लिए आवासीय चिकित्सा में रखा गया। जब रोग की सम्प्राप्ति विनिश्चय की तो पाया कि पढ़ाई और तैयारी के नाम पर अस्त-व्यस्त जीवनशैली, भोजन और नींद का व्यतिक्रम- वात प्रकोप - कफपित्त क्षीणता विषमाग्नि - आमदोष का निर्माण धात्वाग्नि वैषम्य - ओज:दुष्टि - ओज:क्षरण - मधुमेह।

चरक स्पष्ट कहते हैं कि- क्षीणेसु दोषेष्ववकृष्य धातून् सन्दूष्य मेहान् कुरुतेऽनिलश्च।। (च.चि. 6/6)। वहीं मधुमेह ने वृक्क (kidney) की क्रिया को क्षतिग्रस्त किया। क्योंकि वायु जब ओज को लेकर बस्ति (मूत्रवहतंत्र) में ही जाता है तभी मधुमेह की प्रवृत्ति बनती है-

तैरावृतगतिर्वायुरोज आदाम गच्छति।
यदा बस्तिं तदा कृच्छ्रो मधुमेह: प्रवर्तते।।

(च.सू. 17/79-80)

हम कभी भी अखबारी विज्ञापन के पक्ष में नहीं रहे, न ही संस्था के पास ऐसा बजट है, पर अब हमारी बाध्यता यह हो गयी है कि लोकहित, मानवता के हित में कि ऐसे अनुसंधानों, प्रयोगानुभवों को वैदिक चिकित्सा के प्रभाव, हमारी आयुर्वेद साधना और परिणाम को आप तक पहुँचायें ताकि अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें।

रवि भगोलीवाल मानसिक रूप से चिन्तित, अशान्त, भविष्य को लेकर निराश था। इससे स्पष्ट था कि रजोदोष भी बढ़ा था। रजो बहुलां वायु: के अनुसार रजो दोष वायु से सम्बन्ध रखता है। रजोगुण की शांति के बिना मानसिक स्थिरता, उत्साह, शांति और संतोष को नहीं लाया जा सकता। यदि शांति नहीं आयेगी, बेचैनी नहीं मिटेगी तो शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता। चरकाचार्य ने कहा है-

शरीरं ह्यापि सत्त्वमनुविधीयते, सत्त्वं च शरीरम्।। (4/36)

अर्थात् शरीर मन का अनुकरण करता है और मन शरीर का।

अब हमने रोग की सम्प्राप्ति विघटन के उद्देश्य से इस प्रकार चिकित्सा व्यवस्था तैयार की-

  • शष्टिकशालिपिण्ड स्वेद और अनुवासन बस्ति। यह वात शामक, पोषक, बलदायक और ओजवर्धक भी है। वस्तुत: मधुमेह की शास्त्रीय चिकित्सा में यह निर्देश है-
  • संवृंहणं तत्र कृशस्य कार्यं संशोधनं दोषबलाधिक्य।। च.चि. 6/15।।

    अर्थात् यदि मधुमेह रोगी कृश हो तो उसको पोषण देते हुये चिकित्सा करनी चाहिए। किन्तु पश्चिमी चिकित्सा (western medicine) विधान में इसका ध्यान नहीं दिया जाता परिणाम रोगी जटिल होता जाता है।

    • इसके अतिरिक्त निरूह बस्तियाँ, शिरोधारा, सर्वांग अभ्यंग, स्वेदन भी दिया गया।
    • देवव्यपाश्रय चिकित्सा एवं योगाभ्यास में- नित्य ब्रह्म मुहूत्र्त में जागरण, शौच, स्नान, जपसाधना और प्राणायाम। आयुर्वेदोक्त देवव्यपाश्रय चिकित्सा का अवलम्बन बहुत लाभ देता है। आचार्य चरक ने राजयक्ष्मा तक में दैवव्यपाश्रय चिकित्सा का आश्रय लेने का निर्देश दिया। (च.चि. 1/189)।

      पर दुर्भाग्य है भारत का कि विदेशों में प्रार्थना की उपचारात्मक शक्ति का भरपूर उपयोग हो रहा है और उसका अचूक लाभ उठाया जा रहा है पर वैदिक चिकित्सा में इसका विधान होने के बावजूद भी भारत में इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है।

    रवि भगोलीवाल और उसकी माँ विधिवत् शास्त्रोक्त मार्गदर्शन प्राप्त कर जपसाधना, आयुष ग्रामेश्वर महादेव नित्य शिवार्चन, आयुष बिहारी राम जानकी पूजन आदि करते।

    सभी आयुष चिकित्सकों को ऐसी सिखानी और करनी चाहिए चिकित्सा

    क्योंकि आचार्य वाग्भट सूत्र. 12/40/57-58 तथा आचार्य चरक जैसा महा वैज्ञानिक च.वि. 3/30 में कहता है कि पूर्व जन्म का कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है। आचार्य चरक, वाग्भट स्पष्ट कहते हैं कि जो रोग पूर्व कर्मों के परिणाम स्वरूप होते हैं उनमें जपसाधना आदि देव व्यपाश्रय चिकित्सा आवश्यक है।

    औषधि व्यवस्था-
    • 1. शु. भल्लातक 5 ग्राम भोजन के पूर्व।
    • 2. महेश्वरी वटी, यशद भस्म 125-125 मि.ग्रा., प्रवाल पंचामृत मु.यु. 250 मि.ग्रा., स्वर्णमाक्षिक भस्म 125 मि.ग्रा., गिलोयघन 250 मि.ग्रा., कासनी घनसत्व 500 मि.ग्रा. मिलाकर दिन में 2 बार।
    • 3. मेषशृंगी 500 मि.ग्रा. दोपहर व रात।
    • 4. पुनर्नवाष्टक कषाय और प्रमेहशामक कषाय (अ.हृ.) 8-8 मि.ली. मिलाकर बराबर भोजन के पूर्व। ?
    • 5. रात में सोते समय- शिवा गुटिका 1 गोली एवं रास्नादिघृत (च.चि. 8/170) 10 ग्राम गरम पानी से।

    उपर्युक्त चिकित्सा वृंहण, धातुपोषण रसायन तथा शोधन कर्म करने लगी।

    हमने देखा कि रवि भगोलीवाल एक आदर्श बेटा है वह बहुत लगन, निष्ठा, श्रद्धा, तत्परता, संयम और मनोयोग से चिकित्सा लेने लगा।

    एक सप्ताह बाद जब रवि भगोलीवाल का रक्तपरीक्षण हुआ तो रिपोर्ट देखकर हम स्वयं आश्चर्यचकित रह गये। वह इसलिए जहाँ किडनी रोगियों में सालों चिकित्सा के बाद भी यूरिन प्रोटीन घट नहीं पाता, वहीं प्रथम सप्ताह में प्रोटीन 2± से घटकर ट्रेस में आ गया। यूरिया 51.8 से घटकर 48.7, क्रिटनीन 2.3 से घटकर 1.5 आ गया। इंसुलिन 60 से घटकर 24 हो गया। अब तो रवि और उनकी माँ और लगन तथा तत्परता से चिकित्सा करने लगे। पंचकर्म औषधियों के साथ-साथ देवव्यपाश्रय चिकित्सा में जप, प्रणिपात, ईश्वर प्राणिधान आदि। वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा भी सिद्ध हो गया है कि सात्विक मंत्र के जप से विश्राम की प्रतिक्रिया होती है, जीवन की आशा बढ़ती हैं, कार्टीसोल तथा अन्य हार्मोन के स्राव में कमी आती है जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली पर तनाव का असर घटता जाता है। दूसरे सप्ताह जब रक्त परीक्षण हुआ तो यूरिया, क्रिटनीन, सब सामान्य आ गया।

    दो सप्ताह बाद ‘रवि’ को डिस्चार्ज कर दिया और निर्देश दिया कि देवव्यपाश्रय चिकित्सा तथा सभी नियम संयम का पालन करते रहना।

    एक ताजी रिपोर्ट के अनुसार गुर्दे (किडनी फेल्योर) की बीमारियाँ मृत्यु के19वें प्रमुख कारण से बढ़ कर 9वें स्थान पर पहुँच गई है, जो वर्ष 2000 से 2021 के बीच 95% की वृद्धि दर्शाती है। यह आयुर्वेद की उपेक्षा का परिणाम है।

    जिस प्रकार आज किडनी फेल्योर, हार्ट फेल्योर, लिवर फेल्योर, स्ट्रोक की समस्याओं की बाढ़ आ गयी है तो मानव को सचेत होकर अपनी वैदिक चिकित्सा की ओर उन्मुख होना चाहिए यह बहुत ही प्रभावशाली है।

    रवि भगोलीवाल जी की अभिव्यक्ति
    डॉक्टरों ने माँ से कहा था कि आपने अपना बेटा खो दिया!!

    मैं रवि उम्र ३०, २०१२ में डायबिटीज की समस्या हुयी थी, आगरा में डॉ.डी.के. हाजरा का इलाज चला तथा 2015 में लखनऊ में सेवा हॉस्पिटल में दिखाया, डॉक्टर ने मेरी माँ से कहा कि आपने अपना बेटा खो दिया, सब लोग परेशान हो गये। यहाँ पर 6 बार इंसुलिन लेने लगा।

    सन् 2019 में लखनऊ के डॉ. अरुण पाण्डेय गोमती नगर में दिखाया तो उन्होंने टाइप-1 डायबिटीज बतायी और इंसुलिन 4 बार लेना शुरू कर दिया।

    फिर उसी बीच सितम्बर 2024 को पेट में दर्द के चलते जाँच करवाने पर किडनी की समस्या बतायी।

    फिर यहाँ के बारे में मेरे मौसा जी डॉ. एस.एस. भटनागर तथा डॉ. जी. एस. राजपूत द्वारा आयुष ग्राम चित्रकूट का पता चला।

    रोते हुए आए थे हँसते हुए जा रहे हैं!!

    24 सितम्बर 2024 को मैं आयुष ग्राम चित्रकूट आया, हम सब लोग बहुत घबराये थे, मेरी केसहिस्ट्री हुयी, फिर मुझे आचार्य डॉ. वाजपेयी जी की ओपीडी में भेजा गया, उन्होंने देखा और कहा कि आपने इतनी छोटी सी उम्र में इतना सब बेकार कर लिया है लेकिन घबरायें नहीं सब ठीक होगा। उन्होंने 2 सप्ताह आवासीय चिकित्सा की सलाह दी, मैं और मेरी माँ रह गये, मुझे पहले सप्ताह की ही चिकित्सा में सारी रिपोर्ट्स नार्मल आ गयीं और प्रोटीन जो (2±) में था वह ट्रेस में आ गया।

    मैं विधिवत् योग प्राणायाम जप-साधना करता। अब तो एक नई एनर्जी मिलने लगी और सबसे ज्यादा चमत्कार की बात तो तब हुयी मेरी 2 अक्टूबर 2024 की जाँच में सब नार्मल आ गया।

    हम सब लोगों ने तो सारी आशायें ही छोड़ दी थीं आप मेरी बात को सब जगह पहुँचायें और सभी ऐसे पीड़ित लोग ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट जाकर लाभ उठायें।

    रवि भगोलीवाल,
    मकान नं.- 616, पी.ओ.-3, माहेश्वरी नगर, आईआईएम रोड, लखनऊ (उ.प्र.)
    मोबा नं.- 9956663526
    लेख पढ़ने के बाद आप अपने विचार और नाम/पता व्हाट्सएप में लिखें।
    हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

    सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

    "चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका

    आयुष ग्राम कार्यालय
    आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
    सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
    चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

    प्रधान सम्पादक

    आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

    घर बैठे रजिस्टर्ड डाक से पत्रिका प्राप्त करने हेतु। 450/- वार्षिक शुल्क रु. (पंजीकृत डाक खर्च सहित) Mob. NO. 9919527646, 8601209999 चिकित्सा पल्लव के खाता संख्या 380401010034124 IFCE Code: UBIN0559296 शाखा: कर्वी माफी पर भेजें।