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क्यों कूल्हा बदलवायें, जब अपनी वैदिक चिकित्सा में श्रेष्ठ उपाय है!!

कूल्हा या घुटना बदलवाने को यदि किसी ने अपना स्टेटस सिंबल नहीं बना रखा तो इस दर्दनाक हादसे को टाला जा सकता है और उससे अच्छा पूर्ण प्राकृतिक समाधान पाया जा सकता है, उन्हीं कूल्हों को प्राकृतिक रूप से मरम्मत करके।

हमने दर्दनाक हादसा इसलिए लिखा कि विश्व प्रसिद्ध एक चर्चित लेखिका वह भी एमबीबीएस डॉक्टर बांग्ला देश से निर्वासित डॉ. तसलीमा नसरीन ने 23 दिसम्बर 2023 को ‘अमर उजाला दैनिक’ में लिखा कि भारत में 44 फीसदी ऑपरेशन केवल कमाई के उद्देश्य से किए जा रहे हैं। यह उन्होंने तब लिखा जब उनके साथ हादसा हो गया।

टारगेट पूरा करने के लिए डॉ. तसलीमा का हिप ज्वाइण्ट काटकर उसकी जगह घटिया इम्लांट लगा दिया।तब डॉ. तसलीमा ने बड़े मार्मिक ढंग से सबको लिखकर बताया कि- ‘‘जिस दिन मेरा इम्प्लाण्ट टूटेगा उस दिन व्हील चेयर के अलावा चलने का कोई विकल्प नहीं रह जायेगा।’'

कूल्हे बदलवाने से सम्बन्धित कुछ बातें गूगल में दर्ज हैं जैसे कि कृत्रिम कूल्हे के जोड़ का जीवन काल आमतौर पर 10-15 साल के बीच होता है इसलिए यदि युवाकाल में कूल्हा बदलवाना शुरू किया तो जीवन में 2-4 बार तक कूल्हा बदलवाना पड़ता है।

हिप रिप्लेसमेंट के 6 माह बाद भी पैर में दर्द होता पाया जाता है, उसका कारण बताते हैं कि ढीला इम्प्लाण्ट अर्थात् हड्डी इम्प्लाण्ट में विकसित नहीं हो पाती, हड्डी कठोर तने की तुलना में अधिक लचीली होती है जिससे इम्प्लाण्ट कॉर्टिकल हड्डी में दब जाता है। हिप रिप्लेसमेंट के बाद पैर असमान भी हो जाते हैं तो सर्जन कहने लगता है कि यह मांसपेशियों में थकान के कारण होता है।

यदि मामला गंभीर हो गया तो कहते हैं कि दूसरे तरह की सर्जरी करनी पड़ेगी।

हिप रिप्लेसमेण्ट के 4 महीने बाद भी दर्द और लंगड़ापन के मामले आये हैं और 2 साल बाद भी दर्द से परेशान मिले हैं। हिप रिप्लेसमेण्ट के बाद 12 सप्ताह तक भी काफी दर्द झेलना पड़ता है और दर्द की दवा खाते-खाते किडनी फेल्योर के मामले आए हैं।

हिप रिप्लेसमेण्ट के 5 साल बाद भी दर्द की शिकायत करने वाले रोगी को जब सर्जन कहता है कि आपको दर्द आवर्ती टेंडीनाइटिस बर्साइटिस और पीठ के निचले हिस्से में दर्द या दबी हुयी तंत्रिका के कारण होता है अब आप इसे ठीक कराइये।

तब रोगी रो पड़ता है कि कब तक इस जाल में फंसा रहूँगा।

चित्रकूट के आयुष ग्राम में हर साल अनेकों ऐसे रोगी आते हैं जिन्हें डॉक्टरों ने कूल्हा बदलवाने (हिप रिप्लेसमेण्ट) ही एक मात्र उपाया बताया गया था और वे केवल यहाँ २ सप्ताह ‘धातु परिपोषण’ थैरेपी से कूल्हा बदलवाने से बच जाते हैं।

धातु परिपोषण वह थैरेपी है जिसमें केवल औषधीय चिकित्सा, स्नेहन, स्वेदन और शोधन चिकित्सा से Necrosis (नेक्रोसिस/परिगलन) को रोका जाता है तथा स्रोतोरोध हटाकर वहाँ तक रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति को निर्बाध कर Necrosis (नेक्रोसिस/परिगलन) जन्य दर्द को समाप्त किया जाता है जिसका परिणाम 15 दिन में ही दिखाई पड़ने लगता है वह भी बिना किसी तरह के चीर-फाड़ या इम्प्लाण्ट के। लगातार ऐसे ठीक हुये रोगियों के विवरण आयुष ग्राम चित्रकूट के यू-ट्यूब चैनल और वेबसाइट में उपलब्ध हैं।

इसी क्रम में हम एक रोगी श्री ओमप्रकाश यादव जौनपुर की कूल्हा बदलवाने से बचाने की सफल चिकित्सा का विवरण लिख रहे हैं आप देखेंगे कि जिस रोग में हौवा खड़ा कर कूल्हा बदलकर कृत्रिम कूल्हा लगाया जाता है जिसकी यह भी गारण्टी नहीं कि कितने दिन चलेगा वहीं उसी के प्राकृतिक कूल्हे को कितनी सरलता से कार्यकारी बनाया जा सकता है।

28 दिसम्बर 2023 को जौनपुर (उ.प्र.) के ग्राम गड़ासेनी, पोस्ट- नौपेड़वा बाजार, तह. सदर जौनपुर के श्री ओमप्रकाश यादव उम्र 48 पत्नी उर्मिला सहित आये।

रजिस्ट्रेशन कराया, ओपीडी में आये, उन्होंने बताया कि दो साल हो गये दाहिने कूल्हे में दर्द है।

एमआरआई कराने पर दोनों कूल्हे खराब बताये हैं एलोपैथिक दवा से लाभ हुआ नहीं अत: डॉक्टर ने कृत्रिम कूल्हे लगाने को कहा है।

पेट खराब रहता है, पाचन ठीक नहीं रहता, दर्द की दवा लगातार खाता हूँ।

श्री ओमप्रकाश यादव जी ने कहा कि मुझे डॉ. ए.के. सिंह ने भेजा है उनके कूल्हे भी खराब हो गये हैं जो यहाँ की चिकित्सा से ठीक हुये हैं।हमने एम.आर.आई. रिपोर्ट देखी-

There is grade-II AVN changes in the left femoral head affecting 25% of surface depression demonstrated.
There is grade-IV AVN changes in the right femoral head affecting at least 50-70% of the surface area more so anteriorly and superiorly of the right femoral head articular surface depression with early secondary osteoarthritis demonstrated.

इस रिपोर्ट से एवीएन (अवस्कुलर नेक्रोसिस जिसे ऑस्टियोनेक्रोसिस भी कहा जाता है।) स्पष्ट हो रहा है वह यह स्थिति है जब खून की कम आपूर्ति के कारण हड्डी के भाग नष्ट होने लगते हैं। अब बताइये! कितनी छोटी सी बात है कि कूल्हे के जोड़ तक खून की आपूर्ति ठीक कर दीजिए, जैसे-जैसे खून की आपूर्ति होती जाएगी हड्डी का वह भाग फिर भरने और बनने लगता है जो नष्ट हो गया है।

यह कोई हौवा नहीं, न ही घबराने की जरूरत है, यह आचार्य चरक का मज्जा अस्थिगत वात है।

मेदोऽस्थिपर्वणां सन्धिशूलं मांसबलक्षय:।
अस्वप्न: सन्तता रुक् च मज्जास्थिकुपितेऽनिल:।।

च.चि. 28/33

जिसमें प्रभावित स्थान में फटने की सी पीड़ा, जोड़ में शूल, मांसक्षय, बलक्षय, सही ढंग से नींद का अभाव, लगातार पीड़ा का बना रहना होता है।

अब एक प्रश्न बनता है कि आखिर वहाँ पर असहनीय पीड़ा क्यों होती है तो आधुनिक चिकित्सक कहेंगे कि वहाँ पर रक्त की आपूर्ति नहीं हो रही है और हड्डी का परिगलन हो रहा है। अब आप देखिए कि आयुर्वेद शास्त्र इसका यही उत्तर हजारों साल से दे रहा है- वायुर्धातुक्षयात् कोपो मार्गस्यावरणेन च (व)।।

कि धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा आदि) के क्षय अर्थात् आपूर्ति न होने से और वायु के आवागमन में रूकावट आने से वायु कुपित (Aggravated) हो जाता है। फिर सिकुड़न, जकड़न, पीड़ा, लंगड़ापन, लूलापन, कुबड़ापन, अंगों का सूखना आदि समस्यायें आ जाती है जिसका विस्तार से वर्णन आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान 28/20-23 तक किया है।

श्री ओमप्रकाश यादव जी में सबसे पहले किसी भी कारण वायु का असंतुलित हुआ परिणामत: रक्त का संचरण अस्त-व्यस्त हुआ अत: अस्थि का पोषण रुक गया बस परिगलन (नेक्रोसिस/AVN) शुरू। क्योंकि-

पृथिव्यग्न्यनिलादीनां संघात: स्वोष्मणा कृत:।
स हृच्छूल इति ख्यातो रसमारुतसंभव:।।

सच.चि. 17/30-31


पृथ्वी महाभूत, अग्नि और वायु के माध्यम अस्थि की उत्पत्ति और पोषण होता है।

आचार्य चरक सूत्रस्थान 20/13 में ऐसी अवस्था में बहुत सुन्दर चिकित्सा सूत्र देते हैं। तदनुसार उन्हें गुग्गुल तिक्तघृतम् से स्नेहपान 10 मि.ली. से प्रारम्भ कर 60 मि.ली. तक फिर स्वेदन पश्चात् आस्थापन और अनुवासन बस्तियों का प्रयोग किया गया। जैसे ही यह चिकित्सा हुयी तो 7वें दिन से परिणाम आने लगा, वात दोष पर जैसे ही विजय पायी गयी तो ओमप्रकाश का मुरझाया चेहरा फूल जैसा खिलने लगा। आचार्य चरक ने कहा-

तत्रावजितेऽपि वाते शरीरान्तर्गता वातविकारा: प्रशान्तिमापद्यन्ते,
यथा वनस्पतिर्मूलेछिन्ने स्कन्धशाखाप्ररोहकुसुम फलपलाशादीनां नियतो विनाशस्तद्वत्।।

च.सू. 20/13।।

अर्थात् वात को जीत लेने पर शरीर में फैली सारी पीड़ायें, समस्यायें, कुपोषण की स्थितियाँ आपूर्ति की बाधायें उसी प्रकार ठीक हो जाती हैं जैसे किसी वृक्ष की जड़ कट जाने से उसकी डालें, शाखायें, अंकुर फूल, फल, पत्ते आदि सब नष्ट हो जाते हैं।

औषधि व्यवस्था.
  • 1. 1. रसोनादि टेबलेट (जिसे रसोन घनसत्व में अदरक की दो भावनायें देकर तैयार किया जाता है।) से निर्मित क्षीर पाक प्रात: 7 बजे।
  • 2. अष्टवर्ग कषायम्5 मि.ली., रास्नासिन्दूवारादि कषायम् 5 मि.ली., अखिलदोषतापहर कषाय 5 मि.ली. गरम पानी 30 मि.ली. मिलाकर भोजन के 30 मिनट बाद।
  • 3. हीरक युक्त त्रैलोक्य चिंतामणि रस 60 गोली (रसयोग सागर) वृहद् वातगजांकुश रस 60 गोली, रत्नप्रधान जवाहर मोहरा (कालेड़ा) 30 गोली, अस्थिसंहार चूर्ण 30 ग्राम, अर्जुन चूर्ण 30 ग्राम, मुक्तापिष्टी 3 ग्राम, कुक्कुटाण्डक त्वक भस्म 10 ग्राम सभी घोंटकर 60 मात्रा। 1x2 शहद से।
  • 4. वातरक्तान्तक कषाय ;सण्योण्द्ध 8-8 मि.लि. 30-30 मि.ली. जल मिलाकर भोजन के पूर्व।

15 दिन यहाँ धातु परिपोषण ‘थैरेपी’ के अन्तर्गत शोधन के बाद श्री ओमप्रकाश यादव जी ने जब उक्त औषधि व्यवस्था सेवन की तो एक माह में सच में पुनर्युवा होकर जैसे आये। अस्थियाँ पोषण की स्थिति समझने के लिए जब हमने विटामिन डी-25 ओएच की जाँच करायी तो 56.35 से बढ़कर 67.0 हो गया। यद्यपि यह अभी भी कम था पर अब सामान्य की ओर था। ऐसे रोगियों को हम ब्रह्मचर्य के पालन और भगवान् सूर्य की उपासना की सलाह अवश्य देते हैं क्योंकि अब्रह्मचर्य की स्थिति में विटामिन डी क्षय की ओर ही जाता है। श्री ओमप्रकाश यादव का विडियो Ayushgram Chikitsalay Chitrakootdham के यू-ट्यूब चैनल में देखा जा सकता है।

अभी आगे हम ऐसे ही एक रोगी श्री नरेन्द्र सिंह सतना और रीवा के उमेश सेन (अध्यापक) का चिकित्सानुभव प्रकाशित करेंगे। इन्हें भी एलोपैथ में कूल्हे बदलाने पर जोर दिया गया था। महेश कुमार पीलीभीत का भी चिकित्सानुभव प्रकाशित करेंगे ये तो आयुष ग्राम में व्हील चेयर में ही लाये गये थे अब वे चल रहे हैं। हमें चाहिए कि आयुर्वेद की ऐसी सफलताओं और प्रयोगों को सब जगह चर्चा करें और उन्हें बचायें, बतायें जो अज्ञानतावश कूल्हा बदलवाने (Hip Replacement) की कतार में है। आप सभी यदि ठान लें तो लाखों लोग कूल्हा बदलवाने से बच सकते हैं, हार्ट की सर्जरी से बच सकते हैं और किडनी रोगों से भी। अल्जाइमर जैसे रोगों से उबर सकते हैं और आयुर्वेद का डंका बज सकता है।

हम यह परिश्रम केवल और केवल पीड़ित मानव के हित के लिए और वैदिक चिकित्सा को पुनर्स्थापित करने के लिए कर रहे हैं कि ऐसी सफलताओं को लिपिबद्ध कर फिर प्रकाशित कर आप तक पहुँचाते हैं। यदि हमारे प्रयास से एक भी पीड़ित मानव का कल्याण हो गया वह ऑपरेशन से बच गया, पीड़ा से मुक्त हो गया तो हमारा प्रयास सफल हो गया।

इसी दिन ओमप्रकाश यादव ने आप सबके लिए अपनी अनुभूति इस प्रकार व्यक्त की-
मैं कूल्हा बदलवाने से बचा आयुष ग्राम चित्रकूट से!!

मै ओमप्रकाश यादव 4 साल पहले मैं जब भी बाइक में बैठता या उतरता था तो दायें तरफ का कूल्हा अकड़ जाता था फिर उसके बाद बाइक से उतरकर पैरों को जमीन पर पटकता था तब ठीक हो जाता था।

यह प्रक्रिया 2 साल तक चली, कई बार दर्द ऐसा होता था कि छटपटा जाता कि मानो प्राण निकल जायेंगे। मैं नौपेड़वा बाजार के हॉस्पिटल में और भी कई डॉक्टरों को दिखाया पर आराम नहीं हुआ। अब मैं प्रयागराज में डॉ. यू.बी. यादव को दिखाया तो उन्होंने एक्स-रे फिर एमआरआई के बाद बताया कि कूल्हे की हड्डी गल रही है और कूल्हा बदलना होगा।

मैं घर आ गया। मैं परेशान तो था ही तभी हमारे एक करीबी मित्र डॉ.ए.के. सिंह को मेरे बारे में जब जानकारी हुयी तो उन्होंने हमें फोन कर ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट के बारे में बताया, कहा कि भइया! हमको भी यही समस्या थी तो मैं भी आयुष ग्राम चित्रकूट जाकर आवासीय चिकित्सा ली और अब पूरी तरह ठीक हूँ।

मैं अपनी पत्नी उर्मिला सहित बिना देर किए 28 दिसम्बर 2023 को आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचा। अपना रजिस्ट्रेशन कराया, मेरी केसहिस्ट्री हुयी, कुछ जाँचें हुयीं, उसके बाद ओपीडी में डॉक्टर वाजपेयी जी ने देखा और कहा परेशान न हों बिल्कुल ठीक होंगे। उन्होंने 2 सप्ताह की आवासीय चिकित्सा की सलाह दी। मैं चिकित्सा लेने लगा। पहले सप्ताह दर्द थोड़ा बढ़ा क्योंकि मैं पहले पेन किलर लगातार खाता था और चित्रकूट पहुँचने पर एकदम छोड़ दिया। यह बात डॉक्टर साहब को बतायी तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं धीरे-धीरे दवा बन्द करेंगे। उन्होंने अपने यहाँ भी दवा बदली और दूसरे सप्ताह से मुझे बहुत आराम होने लगा। 2 सप्ताह बाद मुझे 1 माह की दवा देकर डिस्चार्ज कर दिया गया। 9 फरवरी 2023 को मैं फिर चित्रकूट आयुष ग्राम फालो-अप में आया मुझे पूर्ण आराम था। सोचिए! यदि मैं आयुष ग्राम चित्रकूट न आता तो कूल्हे का ऑपरेशन कर ही देते। यदि कहीं नकली इन्प्लाण्ट पड़ गया और वह कभी टूटा तो व्हील चेयर में ही आना पड़ता। मैं तो कहता हूँ आयुष ग्राम अस्पताल नहीं एक साधना केन्द्र है। ट्रस्ट का अस्पताल है अत: पूर्ण ईमानदारी।

ओमप्रकाश यादव,
ग्राम गड़ासेनी, पोस्ट- नौपेड़वा बाजार,
तह.- सदर जौनपुर, जौनपुर (उ.प्र.)

ध्यान रखना चाहिए कि हृदय रोगी का ओज प्रभावित होता है, प्राणवायु, साधक पित्त अवलम्बक और रसधातु असंतुलित होता है। इस पर ध्यान रखकर चिकित्सा करनी चाहिए तो जैसे-जैसे रोगी का ओज बढ़ेगा, वैसे-वैसे उसका हृदय स्वस्थ होगा। रोगी को ब्रह्मचर्य का पालन, प्रात: की हवा, ध्यान, प्राणायाम और जप का निर्देश देना चाहिए। रोगी को गोदुग्ध, गोघृत अवश्य देना चाहिए, यह ओजवर्धक है। यदि आप सब अभियान चला दें तो किसी को भी स्टेंट और बाईपास सर्जरी से न गुजरना पड़ेगा।

हम यह सारा परिश्रम इसीलिए करके आप तक पहुँचा रहे हैं ताकि एक नये युग अवतरण हो सके। हम यह सोचते हैं कि जब मोदी जी बिना किसी एलोपैथ की जाँच और दवा के बिना छुट्टी लिए देश को आगे ले जा रहे हैं तो उसी आयुर्वेद और योग से अन्य सभी क्यों नहीं ऐसे हो सकते?

हाल में ही किये गये शोध में बताया गया है कि यदि जीवनशैली में सुधार लाया जाय तो 58 फीसदी लोग मधुमेह के खतरे से बच सकते हैं।

लेख पढ़ने के बाद आप अपने विचार और नाम/पता व्हाट्सएप में लिखें।
हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका

आयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

प्रधान सम्पादक

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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