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झटके/दौरों की बीमारी ने चन्द्रकुंवर को बेकार कर दिया था!!

रोग छोटा सा पर सही चिकित्सा के अभाव में भटकाव लम्बा!!

हमारे देश के प्राच्य चिकित्सा वैज्ञानिक धन्वन्तरि, चरक, वाग्भट के चिकित्सा सिद्धान्तों की बराबरी विश्व की कोई चिकित्सा प्रणाली नहीं कर सकती। इसीलिए एलोपैथ चिकित्सा के इतना विकसित होने के बावजूद आज भी अनेक रोगों की चुनौतियाँ सामने हैं। वहीं ऐसे चुनौती बने रोगों का समाधान हम लगातार वैदिक चिकित्सा वैज्ञानिकों के चिकित्सा सिद्धान्तों से कर रहे हैं और उसका प्रमाण भी दुनिया के सामने रख रहे हैं। उन्हीं में से एक बीमारी है बच्चों के झटके/दौरों की बीमारी। जिसमें सालों दवाइयाँ खिलाने के बाद भी एलोपैथ कुछ नहीं पा रहा उल्टे बच्चे शिथिल होते जाते हैं।

10 जनवरी 2025 को चित्रकूट से ही मनीष द्विवेदी अपने 4 साल के बेटे चन्द्रकुंवर को लेकर आये। पर्चा बनवाया, केसहिस्ट्री में उन्होंने बताया-

  • 1 साल पहले से इसे झटके आना शुरू हुये।
  • झटके/दौरे के समय मुँह चलाता, घों-घों की आवाज निकालता, दाँत किटकिटाता।
  • आँखें चढ़ जाती हैं, हाथ-पैर झटकता है।
  • पहले यह बच्चा थोड़ा-थोड़ा बोलता था जब झटके/दौरों की बीमारी शुरू हुयी तो बच्चे ने बोलना बन्द कर दिया।
  • हमने सबसे पहले प्रयागराज में डॉ. कार्तिकेय शर्मा जी के यहाँ ले गये, वहाँ 8 दिन भर्ती रखा पर कोई आराम नहीं मिला। बल्कि बीमारी बढ़ती ही गयी।
  • फिर बाँदा के डॉ. नरेन्द्र गुप्ता के यहाँ ले गये उनकी भी दवा 1 सप्ताह तक चली पर कोई लाभ नहीं मिला।
  • उसके बाद हम बच्चे को पीजीआई लखनऊ ले गये, 6 माह से इलाज चल रहा है पर कोई आराम नहीं मिला। बच्चा दिनों दिन सुस्त होता जा रहा है।
  • बच्चे के पिता श्री मनीष द्विवेदी ने कहा कि इसकी बीमारी के चलते हम बहुत परेशान हैं मेरा कारोबार सब चौपट हो गया।
  • तभी हमें आयुष ग्राम चित्रकूट का पता चला तो हम यहाँ ले आये।

आयुष ग्राम के आ.एम.ओ. डॉ. आशुतोष त्रिपाठी ने केस हिस्ट्री लेने के बाद बच्चे को हमारी ओपीडी में भेज दिया। हमने देखा तो समझ गये कि इस रोग को धन्वन्तरि जी ने ‘स्कन्दापस्मार’ कहा है, वे कहते हैं-

नि:संज्ञो भवति पुनर्भवेत्ससंज्ञ:, संरब्ध: करचरणैश्च नृत्यतीव।
विण्मूत्रे सृजति निवद्य जृम्भमाण:, फेनं च प्रसृजाति तत्सखाभिपन्ना:।।

सु.उ. 27/9।।

अर्थात् शिशु में कभी चेतना आ जाती है, कभी चेतनता नष्ट हो जाती है। जकड़ा या बँधा जैसा महसूस करता है, हाथ-पैर झटकता है, तरह-तरह की आवाज करता है, जम्भाई आती है, आँखें चढ़ जाती हैं, मल-मूत्र का त्याग कर देता है।

चन्द्रकुंवर की सभी जाँचें और डॉक्टरों द्वारा चलाई जा रहीं अंग्रेजी दवायें भी देखीं- Levera, Eption, Clobazem Vigabatrin दवायें चल रही थीं।

हमने आश्वासन दिया कि आप परेशान न हों, आपका बच्चा ठीक होगा। उन्होंने कहा कि हाँ! श्री धर्मेन्द्र तिवारी जो म.प्र. में शासकीय शिक्षक हैं उनका बच्चा अभ्यंग भी यहीं से ठीक हुआ है। हमने कहा इन बातों में न पड़ो सब ठीक हो रहे हैं।

अब हमने रोग की सम्प्राप्ति निर्मित की-

स्वप्रकोपक कारणों की उपस्थिति ➡️ शारीरिक दोष वात कफ तथ मानसिक दोष रज तम प्रकोप ➡️ मनोवहस्रोतस् द्वारा हृदय प्रदेश में दोष दूष्य सम्मूर्च्छना ➡️ मन: क्षोभ ➡️ स्मृति विनाश ➡️ नियंत्रणभृंश ➡️ दौरे/झटके, दाँत किटकिटाना, हाथ पैर पटकना आदि (स्कन्दापस्मार)।

भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-

संज्ञावहेषु स्रोत:सु दोषव्याप्तेषु मानव:।
रजस्तम: परीतेषु मूढो भ्रान्तेन चेतसा।।
विक्षिपन् हस्तपादं ... ... ...

(सु.उ. 61/8)

चिकित्सा

इस रोग में हम भगवान् धन्वन्तरि द्बारा उपदिष्ट सुश्रुत के ३ सूत्रों को लेकर चिकित्सा करते हैं-

कार्यो विधि: सर्वो य: उन्मादेषु च वक्ष्यते।।

सु.उ. 61/22।।

स्निग्धं स्विन्नं तु मनुजमुन्मादार्त्तं विशोधयेत्।
तीक्ष्णैरुभयतोभागै: शिरश्च विरेचनै:।।

सु.उ. 62/14।।

शांतदोषं विशुद्धं च स्नेहबस्तिभिराचरेत्।।

सु.उ. 62/35।।

शष्टिकशालिपिण्डस्वेद, गोझरण साधित तैल से सर्वांग अभ्यंग, नाड़ी स्वेद। चतुर्गुणे गवां मूत्रे तैलमभ्यञ्जने हितम् ।। सु.उ.61/24 पश्चात् मदनफल और इन्द्रायण फल चूर्ण बराबर मिलाकर 250-250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार। यह ऊर्ध्व और अधोभाग से शोधन करता है। फिर शतपुष्पादि तैल और मदनफल की स्नेह बस्ति तो फलत्रिकादि क्वाथ की निरूह बस्ति।

चिकित्सा के समय बच्चे में पेट फूलना, दस्त आना, उल्टी जैसी समस्यायें आयीं। जिनका उचित निराकरण किया गया पर दोषों को निकलने से रोका भी नहीं गया।

औषधि व्यवस्था
  • 1. शु. स्कन्दापस्मारारि रस, (मैनशिल 1 ग्राम, शु. धत्तूर बीज 2 ग्राम, स्वर्ण भस्म 200 मि.ग्रा., अम्बर 100 मि.ग्रा. का योग जिसे वचा और ब्राह्मी की भावना देकर तैयार किया गया है) 2 ग्राम चतुर्मुख रस, 1 ग्राम मुक्तापिष्टी, 2 ग्राम हेमवती, 1 ग्राम ब्राह्मीघन, 2 ग्राम मिलाकर 8 मात्रा। 1-1 मात्रा सुबह-शाम शहद से।
  • 2. सारस्वातारिष्ट (स्वर्ण) 5-5 बूँद दिन में 2 बार।
  • 3. रसोन तैल (चरक संहिता) 2-2 बूँद दिन में 2 बार।
झटके कम होने लगे

उपर्युक्त चिकित्सा से 7वें दिन से झटके कम होने लगे, बच्चे में कुछ सक्रियता बढ़ने लगी, 10 दिन की चिकित्सा के बाद हमने चलने वाली नशीली अंग्रेजी दवायें कम कर दीं। वैसे भी उनका कोई उपयोग नहीं था क्योंकि दवायें चल रहीं थीं और झटके आ रहे थे।

9 फरवरी 2025 से पुन: निरूह और स्नेह बाfस्तयाँ दी गयीं।

40 दिन में 90% ठीक

40 दिन की चिकित्सा से 90% ठीक हो गया। केवल 4 बजे सुबह एक बार झटके आने लगे। शेष झटके बन्द हो गये। बच्चे की सक्रियता बढ़ने लगी।

आज चन्द्रकुंवर के माता-पिता बहुत प्रसन्न हैं। वे यही कहते हैं कि चित्रकूट जिले के निवासी होकर भी हम पहले ‘आयुष ग्राम’ क्यों नहीं आ गये, बच्चे को लेकर इधर-उधर भटकते रहे। हमने हँसते हुए कहा कि यदि आप पहले आ भी जाते तो धैर्य पूर्वक यहाँ इलाज नहीं करते क्योंकि आज सभी के दिमाग एलोपैथ और पीजीआई में घुसा है। चाहे उस रोग का एलोपैथ में इलाज हो या न हो।

जब 1 साल में बच्चा लगातार दिमागी रूप से पिछड़ता गया और इधर आपका कारोबार भी खत्म हो गया तब आपने अपने देश की चिकित्सा चरक, सुश्रुत, वाग्भट जैसे प्राच्य चिकित्सा वैज्ञानिकों की धरोहर वैदिक चिकित्सा पर विश्वास लायें।

भाई/बहनों! आज आवश्यकता है अपने भारतीय चिकित्सा ज्ञान, विज्ञान का प्रचार करने और उसे धैर्य पूर्वक अपनाने की अन्यथा समाज का बहुत नुकसान हो रहा है। अब तो चन्द्रकुंवर के पिता श्री मनीष द्विवेदी भक्ति भावना के श्रद्धा सुमन हम पर उड़ेलते हैं, वे गुरु शिष्य परम्परा से जुड़कर जप साधना में भी तत्पर हो गये हैं जो रोग में भी लाभकारी है।

सुश्रुत जैसा शल्य वैज्ञानिक कहता है कि-

पूजां रुद्रस्य कुर्वीत तद्गणानां च नित्यश:।।

सु.उ. 61/26।।

अर्थात् मिर्गी/दौरे/झटके के रोग में भगवान् शिव की पूजा निरन्तर करनी चाहिए। इससे ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की प्राप्ति होती है और शीघ्र और श्रेष्ठ लाभ होता है।

आचार्य चरक जैसा चिकित्सा वैज्ञानिक भी दौरे/झटके रोग में- देव गोब्राह्मणानां च गुरुणां पूजनेन। आगन्तु: प्रशमं याति सिद्धैर्मन्त्रौषधैस्तथा।। चि. 10/93-94।। कहकर ऐसे मानसिक रोग में देवता, गाय, तपस्वी ब्राह्मण, गुरु पूजन का निर्देश देते हैं। किन्तु उन बच्चों का दुर्भाग्य भी देखिए कि वैदिक चिकित्सा विज्ञान में इतनी श्रेष्ठ और फलदायी चिकित्सा उपलब्ध होने के बाद भी आधुनिकता के चक्कर में लाभ नहीं उठा पाते। इसीलिए अब समय आ गया है कि बच्चों के कल्याण हेतु हम इसका खूब प्रचार-प्रसार करें।

श्री मनीष द्विवेदी ने आप सबके लिए अपनी अनुभूति इस प्रकार व्यक्त की-
चन्द्रकुंवर के दौरे मिटे आयुष ग्राम चित्रकूट से!!

मैं मनीष द्विवेदी निवासी दरसेड़ा, जिला- चित्रकूट से हूँ। मेरा बेटा चन्द्रकुंवर उम्र 4 वर्ष, उसे लगभग 1 वर्ष से लगातार झटके आते हैं, बोलता नहीं है, पहले थोड़ा-थोड़ा बोलना शुरू किया था किन्तु जबसे झटके आने लगे तो बोलना बन्द कर दिया। झटके के समय मुँह चलाता, आवाज निकालता, आँखें चढ़ जाती हैं। हमने प्रयागराज में डॉ. कार्तिकेय शर्मा के यहाँ 8 दिन भर्ती रखा लेकिन कोई भी आराम नहीं और लगातार बढ़ते चले गये। तब उन्होंने पीजीआई ले जाने की सलाह दी लेकिन हम बाँदा में डॉ. नरेन्द्र गुप्ता के यहाँ ले गये वहाँ की 1 सप्ताह तक दवायें चलीं लेकिन कोई आराम नहीं लगा।

अब हम बच्चे को पीजीआई ले गये और वहाँ का 6 माह तक इलाज चला लेकिन कोई आराम नहीं, रोग बढ़ता ही चला गया, बच्चे की ये हालत देखकर हम कितने दु:खी थे आप सोच सकते हैं। पीजीआई में डॉ. फिरोज के द्वारा दी गयी दवा से और भी समस्या बढ़ गयी थी, एक दिन हमने समाचार पत्र में आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी आयुष ग्राम (ट्रस्ट) का लिखा एक लेख पढ़ा जिससे श्री धर्मेन्द्र तिवारी ‘शिक्षक’ के बेटे का दौरा/झटका रोग आयुष ग्राम चित्रकूट से ठीक होने के बारे में जानकारी मिली तब मैं अपने बेटे चन्द्रकुंवर को लेकर 10 जनवरी 2025 को आयुष ग्राम चिकित्सालय आया, रजिस्ट्रेशन कराया, हिस्ट्री हुयी और आदरणीय आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी के पास भेजा गया, उन्होंने परीक्षण किया, फिर चिकित्सा प्रारम्भ हुयी।

10 दिन के पंचकर्म और औषधि से मेरे बेटे को बहुत आराम लग गया। जो झटके/दौरे एक साल से बन्द नहीं हो रहे थे वे लगभग बन्द हो गये और आराम लग गया, अब थोड़ा बोलने लगा। 12 फरवरी 2025 को बच्चा खुद से लोटा उठाकर मम्मा-मम्मा बोलकर पानी के लिये बोला और पानी देने के बाद खुद से पिया।

13 फरवरी 2025 को विवाह में अचानक से आकर मीठा उठाकर खाने लगा। बच्चे की ये सब क्रियायें देखकर हमें कितनी खुशी हुयी होगी जरा सोचें।

अभी 6 दिन आगे और थैरेपी दी गयीं। इस प्रकार 16 दिन की पंचकर्म थैरेपी और दवाओं से मेरा बेटा बहुत ठीक है, आगे दवायें तो चलेंगी ही।

दौरे/झटके से पीड़ित बच्चे को लेकर आप सभी आयुष ग्राम पहुँचें और वहीं चिकित्सा लें। मैंने प्रण लिया है कि सभी ऐसे पीड़ित बच्चों की सहायता करूँगा।

मनीष कुमार द्विवेदी,

ग्राम/पोस्ट- दरसेड़ा, चित्रकूट (उ.प्र.)
मो० नं०- 8009811763
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हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका

आयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

प्रधान सम्पादक

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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