सफल चिकित्सा अनुभव-
प्रोस्टेट और हार्ट का ऑपरेशन रिस्की घोषित : प्रोबेशन अधिकारी की चिकित्सा में सफल अनुभव!!

१७ मई २०२४ को ‘व्हील चेयर’ में फतेहपुर से एक ६८ वर्षीय व्यक्ति को आयुष ग्राम की ओपीडी में लाया गया। नाम था गोपाल सिंह चौहान रिटायर्ड जिला प्रोबेशन अधिकारी।

केसहिस्ट्री के क्रम में उनके परिवारीजनों ने बताया कि हम लगातार इन्हें कई बड़े-बड़े हॉस्पिटल में ले जा रहे हैं, भर्ती करा रहे हैं पर हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। अब तो बोलने की सामर्थ्य भी खत्म होती जा रही है, बुद्धि काम नहीं कर रही है, भूख मर गयी है, बीपी घटता बढ़ता है, नींद भी नहीं आती। ‘प्रवीण डायग्नोसिस’ में जाँच करायी तो प्रोस्टेट १२७ ग्राम आया। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की तैयारी की तो घबराहट और बेचैनी होने पर ऑपरेशन नहीं किया और वैदिक हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी में भेजा वहाँ की रिपोर्ट आयी कि हार्ट में ५ ब्लॉकेज हैं, हार्ट का ऑपरेशन भी रिस्की बताया। विदेश के भी डॉक्टर आये उन्होंने भी बताया कि हार्ट का ऑपरेशन, प्रोस्टेट का ऑपरेशन भी रिस्की है। अब हमारे पास कष्ट भोगने के अलावा कोई उपाय शेष नहीं था।

अब गोपाल सिंह चौहान ने कहा कि श्री बालमुकुन्द सिंह जो रिश्ते में हमारे साले लगते हैं वे एक दिन हमारे घर आये, उन्होंने बताया कि कोरोना काल में हमारी माँ मरणासन्न हो गयी थीं,और किडनी, लीवर दोनों तरह की समस्या थी, हम माँ को लेकर ‘आयुष ग्राम’ गये वहाँ दो सप्ताह में आयुष चिकित्सा से स्वास्थ्य लाभ मिला, वे अभी भी यहीं की चिकित्सा में निरन्तर हैं और अच्छा जीवन जी रही हैं।

दर्शन, स्पर्श, प्रश्नादि परीक्षण से स्पष्ट था कि वृद्धावस्था तथा जीवनशैली के कारण शरीरान्तर्गत वात प्रकोप, फलत: प्राणवायु की विकृति जिससे हृदय रोग, रक्तचाप उतार-चढ़ाव, स्मरणशक्ति, बुद्धि में विचलन, चित्त की अस्थिरता, अपानवायु की विकृति से गुदा और मूत्रवह स्रोतस् व्याधि, प्रोस्टेट, समानवायु की विकृति के कारण अग्निमांद्य तथा व्यानवायु के कारण सम्पूर्ण शरीर की शिथिलता, पित्तक्षय के कारण ‘साधक पित्त’ क्षयात्मक लक्षण यानी आत्मविश्वास की कमी, हृदयरोग, पाचन पित्त के क्षय से अपच। इन सब कारणों से ‘ओज क्षीणता’ भी।

हमने देखा कि इन सबके बावजूद भी अभी इनमें व्याधिक्षमत्व शक्ति (Immunity) थी। हमने आश्वस्त किया कि हमें २ सप्ताह का समय दें अच्छे परिणाम आयेंगे। सच बात भी यही थी कि अच्छे परिणाम आना ही था किन्तु सही चिकित्सा न मिलने के कारण यह सब अस्त-व्यस्तता थी।

सही चिकित्सा इसलिए नहीं मिल रही थी कि जहाँ दोषानुसार निदान हो, सम्प्राप्ति की खोज हो, चिकित्सा हो वहाँ श्री गोपाल सिंह चौहान पहुँचे ही नहीं। वे ऐसे चिकित्सा संस्थानों में ही अभी चक्कर लगाते रहे जहाँ केवल लक्षणों और जाँचों के अनुसार १०-१०, २०-२० दवायें लिखी जा रही हैं, ये अस्पताल तो अभी तक हार्ट का ऑपरेशन कर ही देते यदि इन्हें घबराहट या बेचैनी न होती। यदि वे किसी तरह से ऑपरेशन से बचने की कोशिश करते तो उनको या उनके घर वालों को मौत का भय दिखा-दिखाकर ऑपरेशन कर देते।

जबकि दोषानुसार चिकित्सा का परिणाम ही विशिष्ट होता है, समग्र चिकित्सा का रूप लेता है। महर्षि चरक यहाँ तक कहते हैं कि-

यथा हि शकुनि: सर्वंदिवसमपि परिपतन् स्वां छायां नाति वर्तते।
तथा स्वधातुवैषम्यनिमित्ता: सर्वे विकारा वातपित्तकफान्नातिवर्तन्ते।।’’

च.सू. १९/५।।

जिस प्रकार पक्षी दिनभर उड़ता हुआ अपनी छाया से दूर नहीं हो पाता, उसी प्रकार निज रोग वात, पित्त, कफ की विकृति से उत्पन्न होते हैं और ये रोग इन दोषों से परे जा ही नहीं सकते।

पर दुर्भाग्य मानव जाति का कि महर्षि चरक के ऐसे अकाट्य सिद्धान्त का न तो व्यापक प्रचार हो रहा, न प्रयोग, परिणाम स्वरूप मानव भटक रहा है।

रोग की संक्षिप्त सम्प्राप्ति इस प्रकार थी -वातवैषम्य रस धातु विकृति विषमाग्नि रसवह, वातवह, मनोवह, मूत्र और पुरीषवह स्रोतस् विकृति संग और शिराग्रन्थिजन्य स्रोतस् विकृतअनेकों व्याधि लक्षण।

चिकित्सा व्यवस्था में-

  • स्वेदन फिर कासीस तैल की अनुवासन बस्ति, दूसरे दिन महातिक्त और वरुणादि कषाय के मिश्रण से निरूह बस्ति। इसके बाद रुक्ष अभ्यंग, स्नेह अभ्यंग, स्वेदन भी दिया जाता रहा। जलावगाहन तथा बस्तियाँ दी जाती रहीं।
  • आहार में जौ की गरम-गरम विलेपी गोघृत मिलाकर, अग्नि के बल अनुसार।
  • औषधि व्यवस्था में-

  • विश्वेश्वर रस १ ग्राम, रत्नेश्वर रस १ ग्राम, वृहत वातेश्वर रस १ ग्राम, प्रवाल पंचामृत मुक्ता युक्त ३ ग्राम, जवाहर मोहरा (सादा) १० गोली, हेमवती ४ ग्राम, वृद्धिबाधिका वटी डेढ़ ग्राम, कालमेघ घनसत्व ८ ग्राम सभी घोंटकर १६ मात्रा। १-१ मात्रा उष्ण जल से।
  • वरुणादि और पुनर्नवाष्टक कषाय ८-८ मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोत्तर।
  • मूर्च्छित एरण्ड तैल २ मि.ली. रात में गरम जल से।

उपर्युक्त चिकित्सा से वात की समावस्था आने लगी तो रसधातु की विकृति मिटने लगी, धात्वाग्नि और पाचकाग्नि सम्यक् होने लगी, परिणामत: भूख, नींद, मानसिक प्रसन्नता, जीवन की आशा, स्फूर्ति, बल आने लगा।

रोगी में अष्ठीलावृद्धि (BPH-पौरुषग्रन्थि वृद्धि) था। यह ‘वात’ के वैषम्य का प्रमाण देता था। वृद्धौ तु मारुतजे (अ.सं.चि. १५/३) तथा गुल्मो हि वातादृते न संभवति।। (अ.सं.चि. १६/२) ये सूत्र ‘वात’ के असंतुलन को प्रमाणित करते हैं।

उक्त चिकित्सा व्यवस्था में एक सप्ताह में श्री गोपाल सिंह को लाभ होने लगा, उनकी धर्मपत्नी बहुत प्रसन्न हुयीं। बोलीं कि काश! पहले आ गये होते ‘आयुष ग्राम’ आयुर्वेद चिकित्सा में, तो इन्हें इतने कष्ट न मिलते। ये शुरू से बहुत साहसी और परिश्रमी थे पर चिकित्सा न मिलने के कारण परेशान हो गये।

३१ मई २०२४ को जब सोनोग्राफी कराया तो प्रोस्टेट का साइज १२७ ग्राम से घटकर ४५ ग्राम हो गया था। आवाज बुलन्द हो गयी, नई चेतना आ गयी, नींद आने लगी, यूरो बैग निकाल दिया गया। बीपी संतुलित हो गया।

दो सप्ताह बात जब उन्हें डिस्चार्ज किया जा रहा था तब उन्होंने बताया कि मैं बीएचयू से मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र में एम.ए., बी.एड., एम.एड. हूँ। मैं वाराणसी के डिग्री कॉलेज मोती कोड राजा तालाब में प्रवक्ता रहा, यह सेवा छोड़कर मैं कानपुर में असि॰ मैनेजर उद्योग विभाग रहा, यह सेवा छोड़कर सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी फतेहपुर व इलाहाबाद रहा। फिर प्रोबेशन अधिकारी पद में आया तो बाँदा, बस्ती, बदायूँ, ललितपुर, झाँसी, लखनऊ, आगरा, मैनपुरी आदि जिलों में रहा।

पर मेरी बीमारी और डॉक्टरों की चिकित्सा ने सारी योग्यता और पुरुषार्थ को मिटा दिया था। भगवान् राम की तपोभूमि चित्रकूट में आकर समाधान मिला वह भी बालमुकुन्द सिंह के जरिये।

पाठक/पाठिकायें विचार करें कि आज आधुनिक अस्पतालों में चिकित्सा के नाम पर जितना आडम्बर फैल गया उसकी आवश्यकता है नहीं और हम भी आयुर्वेद या आयुष में तभी जाते हैं जब एलोपैथ से निराश हो जाते हैं और यदि आयुर्वेद में एक जगह से सफलता न मिली तो फिर एलोपैथ की ओर ही रुख कर लेते हैं और कहने लगते हैं कि हमने आयुर्वेद भी कराया था। जबकि रोग की जीर्णता देखते हुए आयुर्वेद में समय देना चाहिए इसमें अपार संभावनायें और चिकित्सा क्रियायें हैं।

श्री गोपाल सिंह चौहान ने डिस्चार्ज के समय वीडियो रिकॉर्ड कराया जो Ayushgram Chikitsalaya chitrakootdham के यू ट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है। उन्होंने आप सभी के लिए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए।

लगता था कि अब कुछ नहीं हो सकता!!

मैं गोपाल सिंह चौहान रिटायर्ड जिला प्रोबेशन अधिकारी हूँ। मैंने १२ मार्च २०२४ फतेहपुर में दिखाया तो ४० ग्राम प्रोस्टेट बढ़ा बताया, कानपुर में रामादेवी मेडिकल सेण्टर में जाँच कराने पर ४२ ग्राम प्रोस्टेट निकला, फिर हम वैदिक हॉस्पिटल में १३ मार्च २०२४ से २० मार्च २०२४ तक भर्ती रहे, यहाँ जाँच कराने पर गाल ब्लेडर पर मास जम गया बताया गया, पथरी का ऑपरेशन हुआ। प्रोस्टेट बढ़ने लगा, प्रवीण डाग्नोसिस में रिपोर्ट करायी तो प्रोस्टेट १२७ ग्राम आया। किन्तु घबराहट, बेचैनी होने के कारण ऑपरेशन नहीं किया जा सका। वैदिक हॉस्पिटल ने कार्डियोलॉजी के लिए रिफर किया, कार्डियोलॉजी कानपुर में ५ ब्लॉकेज बताये, इस रिपोर्ट के आधार पर वैदिक हॉस्पिटल ने प्रोस्टेट का ऑपरेशन रिस्की बताया, यूरो बैग डाल दिया गया फिर बालमुकुन्द सिंह फतेहपुर के जो मेरे साले लगते हैं, वे आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट लेकर आये।

मेरी मानसिक स्थिति अब विषाद से भरी हुयी थी, लगता था कि अब कुछ हो नहीं सकता, बोलने का सामर्थ्य नहीं, बुद्धि काम नहीं कर रही थी, भूख बिल्कुल मर गयी थी, एलोपैथ दवा चल रही थी, बीपी घटता बढ़ता रहता था, नींद भी नहीं आती थी, मेरे हार्ट का ऑपरेशन भी डॉक्टरों ने रिस्की कहकर मना कर दिया। विदेश से डॉक्टर आये उन्होंने भी कहा कि रिस्क है।

१७ मई २०२४ को आयुष ग्राम आया, मेरा रजिस्ट्रेशन हुआ, मुझे व्हील चेयर में आचार्य डॉ. वाजपेयी जी की ओपीडी में लाया गया, उन्होंने सारी रिपोर्टें देखीं और नाड़ी परीक्षण के बाद कहा आप बिल्कुल परेशान न हों आपका हार्ट भी काम करने लगेगा, अच्छा हुआ जो ऑपरेशन नहीं हुआ क्योंकि हार्ट के ऑपरेशन के बाद प्राकृतिक स्थिति नहीं बन पाती, प्रोस्टेट भी बिना ऑपरेशन के ठीक होगा, पेट की स्थिति भी ठीक होगी, हमें आप २ सप्ताह का समय दें।

मैं बहुत संतुष्ट हुआ और एक आशा की किरण जगी फिर आईपीडी विभाग में जाकर आवासीय चिकित्सा में रह गया, सेवा के लिये मेरी पत्नी रह गयी, मेरी दवाइयाँ लिखी गयीं तथा पंचकर्म थैरेपी भी शुरू हो गयी। डॉक्टर वेद जी व डॉ. आशुतोष जी प्रतिदिन राउण्ड पर आते, यहाँ की प्रशिक्षित नर्सेज व फार्मासिस्ट अच्छी तरह से उपचार देते। पूरे शरीर में दर्द था, हाथ उठता नहीं था, कन्धे व बायें हाथ में भी बहुत दर्द था लेकिन चौथे दिन से मुझे लाभ मिलने लगा, दर्द कम होने लगा था, भूख लगने लगी थी, आवाज बुलन्द हो गयी, नई चेतना आ गयी, नींद आने लगी थी, १ सप्ताह बाद मेरे सभी कष्ट लगभग दूर होने लगे थे।

आज मैं जिस समय डिस्चार्ज हो रहा हूँ तो मैं बहुत संतुष्ट हूँ। यहाँ का पूरा स्टॉफ व डॉक्टर्स सभी सेवाभावी हैं, मेरी पेशाब की नली भी निकाल दी गयी और मैं हार्ट व प्रोस्टेट ऑपरेशन से बच गया। जीवन बच गया। मैं कहता हूँ कि बुढ़ापे के रोगों की उत्कृष्ट चिकित्सा आयुष ग्राम में हो सकती है।

- गोपाल सिंह चौहान, सेवा निवृत्त जिला प्रोबेशन अधिकारी

मकान नम्बर- ६१८, एमआईजी आवास विकास कॉलोनी, फतेहपुर (उ.प्र.) २१२६०१

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अंक-7, जुलाई 2024

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