चमत्कार करते ये शास्त्रीय योग
एसिडिटी में शक्तिशाली यह लीलाविलास
अनियमित जीवनशैली और अम्लपित्त (एसिडिटी) की बीमारी का चोली दामन का साथ है, उधर एलोपैथ में अम्लपित्त की दवाइयाँ भी बहुत आ गयी हैं जिन्हें कहते हैं पीपीआई ( Proton Pump lnhibitors)। ये पित्त के स्राव को बाधित कर लाभ दिखाती हैं पर इन दवाओं के आमाशय कैंसर और किडनी फेल्योर जैसे दुष्परिणाम भी घोषित हो गये हैं। जबकि वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद में एक से एक बढ़कर अम्लपित्तनाशक औषध हैं जिनके इतने अच्छे सुप्रभाव हैं कि रोग तो समूल मिटता है और शरीर, मन, बुद्धि को बल भी मिलता है।
उन्हीं में से एक औषध कल्प है लीलाविलास रस। यद्यपि लीलाविलास रस भैषज्य रत्नावली, रस चण्डाशु, रसराजसुन्दर, रसेन्द्रसार संग्रह, रसेन्द्र चिन्तामणि में भी वर्णित है जो एक ही तरह के हैं किन्तु आयुर्वेद का एक ग्रन्थ है रसवृन्द। उसमें जो लीलाविलास रस है वह बहुत ही अद्भुत है वह केवल अम्लपित्त को ही नहीं मिटाता बल्कि पूरे महास्रोतस् को स्वस्थ कर नई ऊर्जा, नई कान्ति, तेज, ओज, बल देता है।
अम्लपित्त के कारण होने वाले बाल झड़ने को एक माह में कम कर देता है, नेत्र ज्योति को बढ़ाता है, यकृत् क्रिया को बहुत अच्छा कर देता है और तो और कब्ज को स्थायी रूप से मिटा देता है, रक्ताणुओं की वृद्धि कर हेमोग्लोबिन भी बढ़ा देता है।
बशर्ते गलत जीवनशैली और खान-पान करके फिर से रोग को न बुला लिया जाय। वह लीलाविलास रस इस प्रकार निर्मित किया जाता है-
शुद्ध सूतं समं गन्धं मृतताम्राभ्ररोचनम्। तुल्यांशं मर्दयेद्यामं रुद्ध्वा लघुपुटे पचेत्।
अक्षधात्रीहरीतकी: क्रमवृद्ध्या विपाचयेत्।
जलेनाष्टगुणेनैव ग्राह्ममष्टावशेषकम्।
अनेन भावयेत्पूर्वं पक्वसूतं पुन: पुन:।
पञ्चविंशतिवारं च तावता भृङ्गजद्रवै:।
शुष्कं तच्चूर्णितं खादेत्पंचगुजं मधुप्लुतम्।
रसो लीलाविलासोऽयम्लपित्तं नियच्छति।।
पारद, गंधक की कज्जली ३० ग्राम, ताम्र भस्म (सोमनाथी), अभ्रक भस्म शतपुटी तथा वंशलोचन असली सब १५-१५ ग्राम मिलाकर १ पहर तक खरल में घोंटे फिर शराब सम्पुट में बन्द कर लघुपुट में पाक करें। इसके बाद एक भाग बहेड़ा का बक्कल, आँवला दो भाग और हर्रें चार भाग इन सबको कूटकर आठ गुने जल में पकायें और आठवाँ भाग क्वाथ जल बचने पर उससे उपर्युक्त पुटित द्रव्य में २५ भावना दें। फिर २५ भावना भृंगराज रस की दें। (भृंगराज का क्वाथ नहीं बनाना चाहिए)।
बस! तैयार हो गया अमृत समान औषध लीलाविलास रस इसकी सेवनीय मात्रा ६२० मि.ग्रा. है, मधु में मिलाकर भोजनोत्तर दिन में २ बार सेवन करना है। यह अम्लपित्त को शांत करता है।
आयुष ग्राम चित्रकूट में इस औषध योग का निर्माण कर टेबलेट के रूप में हमेशा रखा है जिसे विभिन्न अनुपान से प्रयोग किया जाता है और बहुत चमत्कार दिखाता है। अम्लपित्त में परिणामशूल, अजीर्ण, अम्लपित्तजन्य, अनिद्रा, स्मृति, दौर्बल्य, वित्त विभ्रम में इसे बहुत ही श्रेष्ठ परिणामोत्पादक पाया है।
हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।
सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्
"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिकाअंक-6, जून -2022
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आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
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