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अध्यात्म

आयुर्वेद में सफलता आध्यात्मिक से शक्ति!!

२३ मई २०२२ को म.प्र. होशंगाबाद से एक बीएएमएस डॉक्टर युवती आयुष ग्राम चित्रकूट में अपनी चिकित्सा हेतु आयी। चिकित्सा परामर्श के बाद सामान्य चर्चा में हमने पूछा कि बेटा! अभी तक तुम क्या करती रही, उसने जो चर्चा की उसे सुनकर हम अवाक् रह गये।

उसने कहा कि मैं वाराणसी के एक मेटरनिटी हॉस्पिटल में १ साल तक काम कर रही थी। पर इतनी अशान्ति, बेचैनी और द्वेषपूर्ण वातावरण उस हॉस्पिटल में कि मैं कह नहीं सकती। उस अशान्त वातावरण में मुझे बहुत मानसिक और शारीरिक परेशानी बढ़ गयी, तब मैं आयुष ग्राम चित्रकूट में चिकित्सा हेतु आयी हूँ। जैसे ही मैंने आयुष ग्राम चित्रकूट के अन्दर प्रवेश किया, इतनी शांति, इतना आल्हाद कि मैं कह नहीं सकती।

उस युवती के इतना कहते ही हमारी जिज्ञासा और कुतूहलता बढ़ी, हमने पूछा बेटा! सच-सच बताओ कि उस मेटरनिटी हॉस्पिटल में १०० में से कितनी गर्भवती ऐसी आतीं हैं जिनका प्रसव सामान्यत: कराया जा सके, उस डॉक्टर बालिका ने तपाक से कहा कि ९० प्रतिशत। हमने कहा यानी १०० में से नब्बे महिलाओं का प्रसव सामान्यतया कराया जा सकता है, उसने कहा बिल्कुल।

हमने कहा कि अच्छा तो बताओ कि वहाँ १०० में से कितनी महिलाओं का प्रसव सामान्यत: कराया जाता है? उसने कहा कि केवल १० प्रतिशत।

हमने कहा ओह! ९० प्रतिशत बेचारी महिलाओं/गर्भवतियों से सरासर मेडिकल क्रूरता? उस बालिका ने कहा जी सर!

फिर कैसे उस हॉस्पिटल में क्या उसके आस-पास कोई शांति की उम्मीद कर सकता है। जहाँ अन्याय पूर्वक धन ऐंठन और ऐसा अन्याय जिसमें ऐसी क्रूरता शामिल है कि खून-खच्चर हो रहा है। जहाँ क्रूरता के दौरान इतनी आहें निकल रही हैं।

उस बालिका ने कहा कि सर! पूरा मैनेजमेण्ट ही वहाँ का तनावपूर्ण, अन्दर पहुँचने वाला हर व्यक्ति वहाँ स्वत: तनाव, चिन्ता, दु:ख और अशान्त हो जाता है।

बताइये! कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है उस देश के चिकित्सा जगत की जहाँ आयुर्वेद जैसी अध्यात्म पर आधारित चिकित्सा विज्ञान का आविष्कार हुआ। तभी तो हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी कहते हैं कि वेद की तरह पूजा प्रतिष्ठा और मान्यता प्राप्त है। आयुर्वेद ऋषि जोरदार शब्दों में कहता है कि-

सर्व प्राणिषु बन्धुभूत: स्यात् ... ... ...
भूतानामाश्वासयिता दीनानामभ्युपपत्ता,
सामप्रधान: रागद्वेषहेतूनां हन्ता च।।

च.सू. ८/१८।।

यानी सभी प्राणियों के साथ आत्मीयतापूर्ण बर्ताव करें, भयभीत को आश्वासन दे (न कि उसके भय का लाभ उठाकर उसका धन हरण करें) शांति प्रधान रहे, दूसरे के कठोर बचनों को सहन करने की सामर्थ रखें, राग या द्वेष उत्पन्न करने वाले कारणों को हटायें।

अध्यात्म एक सर्वश्रेष्ठ जीवन पद्धति है इसका किसी पंथ, सम्प्रदाय, जाति, देश, लिंग से सम्बन्ध नहीं है। किसी भी जाति सम्प्रदाय, पंथ और देश के लोग आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। परम भक्त प्रह्लाद जी कहते हैं-

‘नालं द्विजत्वं देवत्वमृषित्वं वासुरात्मजा:।
प्रीणनाय मुकुन्दस्य न वृत्तं न बहुज्ञता।।
न दानं न तपो नेज्या न शौचं न व्रतानि च।
प्रीयतेऽमलया भक्त्या हरिरन्यद् विडम्बनम्।
ततो हरौ भगवति भक्ति कुरुत दानवा:।
आत्मौपम्येन सर्वत्र सर्वभूतात्मनीश्वरे।।’

श्रीमद्भागवद् ७/५१-५३।।

यानी आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर भगवान् को पाने के लिए ब्राह्मण, देवता, ऋषि, ज्ञानी, दानी, तपस्वी, याज्ञिक, व्रतानुष्ठान आवश्यक नहीं है, इसके लिए आवश्यक है निष्काम भाव से भक्ति और समस्त प्राणियों में ईश्वर के दर्शन।

विज्ञान की तरह अध्यात्म भी कारण और परिणाम के नियम से चलता है। स्वीकारभाव, संयम, सहयोग, नैतिकता और ध्यानपूर्ण जप को अपने जीवन में उतार कर कोई आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त कर सकता है।

तनाव और अशांति का प्रमुख कारण है असंतुष्टि और शिकायतभाव। हमेशा हमें वर्तमान में संतुष्टि भाव और अहोभाव में जीने की आदत डालनी चाहिए और यह आदत ध्यानस्थ होकर गुरु मंत्र जप से पड़ने लगती है।

व्यक्ति हमेशा ध्यान रखे कि अभी तक का जीवन ठीक-ठाक रहा है तो आगे भी ठीक रहेगा। चरक आदेश करते हैं कि नाधीरो ... ... स्यात्।। च.सू. ८/२६।। यानी अधीर न रहें, इसलिए सदैव संयम रखना चाहिए क्योंकि यही हमें शक्ति, समझ और साहस देता है। यथा संभव यथा सामर्थ दूसरों की सहायता करनी चाहिए, हृदय से सबके लिए मंगलकामना का भाव भी एक प्रकार का सहयोग ही है। हमेशा नैतिकता धारण करना चाहिए क्योंकि यह नैतिकता धन और स्वास्थ्य से भी बढ़कर है। नैतिकता अध्यात्म का अद्भुत अंग है तभी आचार्य चरक लिखते हैं कि न नियमं भिन्द्यात् च.सू. ८/२५।। आध्यात्मिक शक्ति को पाने और बढ़ाने के लिए नित्य ध्यान, जप का योग करना चाहिए। सुखासन पर बैठकर प्राणायाम कर फिर साँसों पर या नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि केन्द्रित करते हुए गुरु मंत्र का जप करना चाहिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। आध्यात्मिकता के लिए अपनी आहार शुद्धि अवश्य ध्यान रखें। दुर्गन्धित, कटु, अम्ल, तीखा, रूखा, बासी, जूठा, विदाही आहार का परिवर्जित करें। क्योंकि यह रजो और तमोगुण को बढ़ाता है।

भगवान् कर्म योग का प्रतिपादन करते हुए गीता ३/४२ में बताते हैं कि-

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन:।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स:।।

इस स्थूल शरीर से इन्द्रियाँ बलवान् हैं, इन्द्रियों से मन श्रेष्ठ है, मन से बुद्धि और बुद्धि से आत्मा की ताकत अधिक है। इस आत्मा (परमात्मा) सम्बन्धी चिन्तन-मनन की ओर जाने का नाम है अध्यात्म। यह चिन्तन, मनन जितना पुष्ट और बढ़ेगा उतनी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ेगी और आपकी सफलतायें बढ़ेंगी।

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हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका
अंक-6, जून -2022

आयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

प्रधान सम्पादक

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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