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बच्चे के दौरे/झटके की बीमारी ऐसे ठीक होती है!!

जिन झटके और दौरों की बीमारी को ढोते हुए बच्चों की जिन्दगी, उनका विकास और भविष्य अस्त-व्यस्त हो जाता है वह अपने देश की वैदिक चिकित्सा चरक, सुश्रुत (धन्वन्तरि), वाग्भट के चिकित्सा विज्ञान से सहजता से मिट जाती है। पर दुर्भाग्य देखिए कि सरकार द्वारा न तो आयुर्वेद को बढ़ाया जा रहा है और न ही इसका ऐसा प्रचार-प्रसार किया जा रहा कि परेशान मानवता को अच्छा लाभ मिले। परिणामत: लोग ऐसे पीड़ित बच्चों को लेकर भटक रहे हैं।

‘आयुष ग्राम’ चिकित्सालय चित्रकूट में बच्चों के झटके/दौरे की बीमारी पर लगातार कार्य हुआ और हो रहा है जिसका ऐसा परिणाम है कि यदि अच्छे से इसका प्रचार-प्रसार कर दिया जाय कि लोग इसका भरपूर लाभ उठा लें तो निश्चित रूप से भारत बच्चों के दौरा/झटका मुक्त भारत बन सकता है।

समाचार पत्र के माध्यम से आयुष ग्राम द्वारा लगातार यह कार्य किया जा रहा है।

आज हम एक ऐसे बच्चे के झटके दौरों की सफल चिकित्सा के विषय में बताने जा रहे हैं जिसके पिता स्वयं डॉक्टर हैं और बच्चे की उम्र मात्र 45 दिन।

7 अक्टूबर 2015 दिन बुधवार को ओपीडी चल रही थी तभी एक गाड़ी परिसर में आयी और हड़बड़ाहट में एक दम्पति गाड़ी से उतरकर सीधे ओपीडी की ओर भागे। उन्होंने बताया कि मैं भी डॉक्टर हूँ और वाराणसी के ओपल हॉस्पिटल में आर.एम.ओ. हूँ। मेरे 45 दिन के बच्चे को एक माह से झटके/दौरे आ रहे हैं। एलोपैथ से कोई लाभ नहीं हो रहा।

उनका पर्चा बना, फिर ओपीडी में आये। बताया कि मैं डॉ. संतोष कुमार मिश्र ओपल हॉस्पिटल वाराणसी में आर.एम.ओ. हूँ, मेरा बच्चा शिवांश जब 20 दिन का था तभी डायरिया हो गया। ट्रीटमेण्ट से डायरिया तो मिटा किन्तु 5 सितम्बर 2015 को पहला दौरा/झटका आया। बच्चा बेहोश हो जाता, मुँह से झाग आता है और 30 मिनट में होश में आ जाता है। बच्चे को 100एफ. बुखार भी था।

कई तरह की एलोपैथिक दवाइयाँ भी चल रही हैं पर बिल्कुल लाभ नहीं। इनकी माँ तो बहुत परेशान हैं। सच भी है बच्चों के ऐसी बीमारी होने और ठीक न होने पर बच्चे का तो विकास रुक ही जाता है पर माँ-बाप जिस मानसिक पीड़ा और चिंता से गुजरते हैं वह लिखी नहीं जा सकती।

हमने आश्वासन दिया कि डॉक्टर साहब! आप बिल्कुल परेशान न हों यह बच्चा ठीक होगा।

देखने में तो बच्चे को मिर्गी (Epilepsy) का दौरा था पर जब आयुर्वेदीय निदान किया गया तो वह मिर्गी (दौरा) नहीं मूर्च्छा (Fainting) रोग था।

आजकल यही हो रहा है कि बच्चे को है रोग मूर्च्छा (Fainting) और एलोपैथ में दवायें दी जाती हैं मिर्गी की। इसीलिए बच्चे ठीक होना तो दूर लगातार गंभीर होते जाते हैं।

भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-

क्षीणस्य बहुदोषस्य विरुद्धाहार सेविन:।
वेगाघातादभीघाताद्धीनसत्त्वस्य वा पुन:।।
करणायतनेषूग्रा बाह्येष्वाभ्यन्तरेषु च।
निविशन्ते यदा दोषास्तदा मूर्च्छन्ति मानवा:।।
हृत्पीड़ा जृम्भणं ग्लानि: संज्ञानाशो बलस्य च।
सर्वासां पूर्वरूपाणि यथास्वं वा विभावयेत्।।

सुश्रुत उत्तर॰ 46/3-5।।

अर्थात् शरीर के धारक तत्व रस, रक्तादि के क्षीण होने से, वातादि दोषों की बहुलता, विरुद्ध खान-पान, मल-मूत्र के वेगों के अवरोध, अभिघात, चोट, मनोबल की अल्पता से प्रकुपित दोष मन के बाह्य आभ्यन्तरों में प्रवेश कर रोगी में मूर्च्छा उत्पन्न करते हैं। छाती में पीड़ा, जम्भाई, ग्लानि, चेतना और बल का नाश ये पूर्व रूप होते हैं।

आचार्य चरक ने सूत्र 24/36 में ऐसे रोगी में ‘वेपथुश्च’ अर्थात् कम्पन (झटके) भी लिखा है। इसी झटके को देखकर कम जानकार लोग मिर्गी मानकर उसकी दवा देना शुरू कर देते हैं। अब प्रश्न यह आता है कि यदि यह रोग मिर्गी नहीं तो ई.ई.जी. कराने पर अर्थात् असामान्यता (Abnormality) क्यों आती है।

इस पर भगवान् धन्वन्तरि स्पष्ट कहते हैं कि-

अपस्मारोक्त लिंगानि तासामुक्तानि तत्त्वत:।।

सु.सू.उ. 46/9।।

अर्थात् यह होता तो रोग मूर्च्छा या मूर्च्छी है पर इसमें अपस्मार (मिर्गी) के लक्षण होते हैं। आचार्य चरक ने भी सू. 24/41 एवं वाग्भट (अ.हृ.) ने निदान 6/35 में यही बात बतायी है पर इतना अनुसंधान करने का न तो आज के डॉक्टर के पास समय है और न ही ज्ञान। परिणाम यह है पीड़ित बच्चे और उनके माता-पिता भटक रहे हैं। किन्तु ‘आयुष ग्राम’ में हम अपनी टीम सहित निरन्तर शोध में तत्पर होकर एक समग्र चिकित्सा के सुपरिणाम सामने लाये हैं। इस प्रकार इस बालक के रोग की सम्प्राप्ति का चक्र इस प्रकार बना-

  • अतिसार (डायरिया) के कारण रस धातु क्षीणता फिर अचानक रोक देने से वात प्रकोप
  • मनोवह स्रोतस्दुष्टि - मन के स्थान हृदयस्थ साधक पित्त दुष्टि
  • चेतना और बल नाश - मूर्च्छा। परिणामत: कम्पन, बेहोशी आदि।

अब रोग की सम्प्राप्ति (सही कारण) स्पष्ट हो जाने पर चिकित्सा बहुत ही सरल हो जाती है।

आचार्य वाग्भट कहते हैं कि-

कुर्यात्क्रियां यथोक्तां च यथादोषबलोदयम्।
पंचकर्माणि चेष्टानि सेचनं शोणितस्य च।
सत्त्वस्यालम्बनं ज्ञानमगृद्धिर्विषयेषु च।।

च. 7/107-108।।

आगे वाग्भट यह भी कहते हैं कि-

मदेष्वतिप्रवृद्धेषु मूर्च्छायेषु च योजयेत्।
तीक्ष्णं सन्यास विहितं... ... ...।।7/109।।

अर्थात् जब यह रोग बहुत बढ़ा हुआ हो तो सन्यास रोग में बतायी तीक्ष्ण चिकित्सा करें।

हमने वात प्रधान ‘पित्त दोष प्रभुत्व युक्त’ मूर्च्छा रोग निश्चित कर चिकित्सा प्रारम्भ की। रोग बहुत बढ़ा होने के कारण तीक्ष्ण चिकित्सा का प्रयोग करना पड़ा। विद्वान् पाठकगण सोचेंगे कि इस बच्चे में दौरे के समय झाग भी तो आता था तो मिर्गी क्यों नहीं? हाँ तो बताते चलें कि भगवान् धन्वन्तरि, सु.उ. 46/9 एवं 61/11 का संयुक्त अध्ययन यह बताता है कि वातज मूर्च्छा में भी झाग आता है। ‘फेनं वमन्नपि’।

अब चिकित्सा शुरू हुयी जिसमें- अभ्यंग, स्वेदन और निरूह।

हमने अभी तक के चिकित्सा कार्य में पाया है कि इस रोग में स्नेहन, स्वेदन, निरूह बस्ति तथा स्नेहन बस्ति का अद्भुत प्रभाव है। यही शास्त्र का निर्देश भी है। तदनुसार निरूह, अनुवासन बस्ति, सर्वांग अभ्यंग और स्वेदन दिया गया।

औषधियाँ-

इस रोग में पित्तशामक किन्तु बढ़े हुये दोष को ध्यान में रखकर औषधि का चुनाव करना चाहिए। हमने पहले रक्तसूतशेखर रस (रस चण्डाशु) तथा ब्राह्मी, हेमवती का प्रयोग किया। जिससे 24 घण्टे के अन्दर सुधार आने लगा।

किन्तु एक नई समस्या आ गयी कि शिशु शिवांश को बुखार आने लगा। यह बुखार 104एफ. तक पहुँच जाता। ऐसे में हमने बच्चे के पिता डॉ. संतोष मिश्र और उनकी माँ वन्दना का धैर्य देखा। वे डटे रहे और देवव्यपाश्रय, युक्तिव्यपाश्रय दोनों चिकित्सा विधियों को अपनाये रखे। लगभग 40 दिन में बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया। पर दवायें लगभग 1 साल तक चलीं।

४५ दिन का बच्चा, पिता डॉक्टर जब उसे एक माह से झटके आ रहे हों विचार करें कि माता-पिता की मन: स्थिति क्या होगी? ऐसा पीड़ित बच्चा भी जब अपनी वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद से रोग मुक्त होकर आज सामान्य जीवन जी रहा है तो झटका/दौरा मुक्त बच्चों वाला भारत क्यों नहीं बन सकता।

हम सभी से निवेदन करते हैं कि यदि आपका या आपकी जानकारी में कोई बच्चा दौरे/झटके रोग से पीड़ित है तो परेशान न हों वाराणसी में डॉ. संतोष कुमार मिश्र जी को दिखायें या ‘‘आयुष ग्राम’’ चित्रकूट आयें आपको समाधान होगा।

अब डॉ. संतोष कुमार मिश्र ‘आयुष ग्राम’ के ही हो गये।

बेटे शिवांश के स्वस्थ होने पर डॉ. संतोष मिश्र और उनकी धर्म पत्नी वन्दना तथा दोनों बच्चों के साथ ‘आयुष ग्राम’ के ही हो गये, डॉ. संतोष कुमार मिश्र ‘आयुष ग्राम’ में ही अपनी चिकित्सा सेवायें देने लगे।

शिवांश का अन्नप्राशन संस्कार यहीं हुआ

डॉ. संतोष कुमार मिश्र और धर्मपत्नी वन्दना अत्यन्त कृतज्ञ, धार्मिक, शांत स्वभाव के दम्पति हैं उन्होंने आयुष ग्रामेश्वर महादेव मंदिर में हमारे हाथ से ही शिवांश का अन्नप्राशन संस्कार कराया।

कुछ दिन बाद डॉ. मिश्र ने हमारे पूज्य गुरुदेव जी से मंत्र दीक्षा भी ग्रहण की और खूब भण्डारा किया। कुछ माह बाद यहाँ से जाकर वाराणसी में ‘चिकित्सालय’ स्थापित कर आज चिकित्सा सेवा कर रहे हैं। 2 वर्ष पूर्व जब हम अपने पूज्य गुरु जी और परिकरों के साथ काशी विश्वनाथ जी के दर्शन हेतु गये तो डॉ. संतोष मिश्र जी अपने घर ले गये, उन्होंने वैदिक विधि से अपने दैवी संस्कारों के अनुसार पाद प्रक्षालन, पूजा, आरती, भोजन आदि जो प्रस्तुत किया वह स्मरणीय है।

शिवांश हो रहे 10 साल के

आज शिवांश बाबू 10 साल के हो रहे हैं। आप सोचिये कि हमारे देश में अनगिनत बच्चे दौरा/झटके रोग से ग्रस्त हैं और उनके माता-पिता परेशान हैं। उन सभी तक यह जानकारी पहुँचानी चाहिए ताकि उनका जीवन सम्हल सके यही हमारा उद्देश्य है।

दौरे की बीमारी से मुक्त मेरा बेटा 10 साल का हो रहा है।

सच है यदि मैं बेटे शिवांश को लेकर ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी के पास न जाता तो शायद अभी तक भटकता रहता और दौरे/झटकों में जकड़ा रहता। मैंने वहाँ रहकर वैदिक चिकित्सा के नये-नये प्रयोग, अनुसंधान भी सीखे और बच्चे शिवांश का स्वास्थ्य भी पाया। मैं यह कह सकता हूँ कि वैदिक चिकित्सा में बच्चों के दौरे/झटके की सफल चिकित्सा है। आप वाराणसी आकर मुझे भी दिखा सकते हैं या ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट भी पहुँच सकते हैं आपका बच्चा भी मेरे बच्चे शिवांश की तरह दौरे/झटके से छुटकारा पायेगा ऐसा पूर्ण विश्वास करें।

डॉ. संतोष कुमार मिश्र,
ओमकार आयुर्वेदिक पंचकर्म एवं योग संस्थान
बजरंग नगर कॉलोनी, अशोकपुरम् डॉफी, वाराणसी (उ.प्र.) 221011
मो० नं०- 8840218489
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हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिका

आयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

प्रधान सम्पादक

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी

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