
बच्चों के दौरे झटके की बीमारी अवश्य मिटती है सही चिकित्सा से!
सही चिकित्सा वह है जो रोग को समूल नष्ट कर दे और रोगी को दवाइयों पर निर्भर न रखे, लेकिन अब तो यह स्थिति है कि आधुनिक एलोपैथिक में दवाइयों की संख्या और पावर बढ़ाने की होड़ रहती है। इसमें कहीं न कहीं मानव की नासमझ तो उधर चिकित्सा व्यवस्था की खोट कि रोग और दवाइयों से छुटकारा नहीं मिल रहा। अब तो एक और भयावह स्थिति आ गयी है कि छोटे-छोटे बच्चे झटके, दौरों (सीजर/इपिलेप्सी) से ऐसे ग्रस्त हो रहे हैं कि न तो दवाइयों से छुटकारा मिल रहा न रोग से, बल्कि दवाइयाँ बढ़ती जा रही हैं।
स्थिति ऐसी बिगड़ गयी है कि एलोपैथिक डॉक्टर पहले कहते हैं कि 1 साल दवाइयाँ चलेंगी फिर कहते हैं कि 3 साल तक चलेंगी। अब तो जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे दवाइयाँ भी बढ़ती जाती हैं। बच्चा शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से शिथिल होता जाता है।
‘आयुष ग्राम ट्रस्ट के चिकित्सालय’ चित्रकूट में हर माह ऐसे ही अनेकों झटके/दौरों से ग्रस्त बच्चे आते हैं।
बच्चे की इस दशा से उनके माता-पिता भी मानसिक रूप से बहुत क्षुभित रहते हैं कि न तो दवाइयाँ छूट रहीं है और न रोग।
‘आयुष ग्राम चिकित्सालय’ चित्रकूट में वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद से हर माह अनेकों बच्चे दौरे/झटके की बीमारी तथा नशीली दवाओं से छुटकारा पाते हैं।
आपको जानकर हर्ष होगा कि ‘आयुष ग्राम’ में चल रही ऐसी सफल चिकित्सा सीखने के लिए भारत सरकार आयुष मंत्रालय (आर०ए०वी०) ने यहाँ 4 क्वालीफाइड डॉक्टर्स की नियुक्त की है जो विधिवत् अध्ययन कर ‘पेसेण्ट हिस्ट्री सीट’ भारत सरकार आयुष मंत्रालय (आर०ए०वी०) को नियमित भेजते हैं। इसके लिए भारत सरकार आयुष मंत्रालय (आर०ए०वी०) इन्हें वृत्ति भी देती है।
ऐसे ही 7 फरवरी 2025 को जबलपुर (म०प्र०) इन्कम टैक्स विभाग में पदस्थ श्री सत्यम् अवस्थी की धर्मपत्नी ऋचा अवस्थी अपनी बेटी रम्या 8 माह को लेकर ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट आयीं। शुक्रवार का दिन था। संयोग ऐसा कि उसी दिन हमें राष्ट्रीय आयु० गुरु नियुक्त करने के लिए ‘आयुष ग्राम’ में आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) की टीम यहाँ की गतिविधियाँ देखने हेतु औचक आयी थी। उनका पर्चा बना, रजिस्ट्रेशन हुआ, रम्या (8 माह) की माँ ऋचा अवस्थी ने केसहिस्ट्री में बताना शुरू किया-
- जन्म के समय रोयी नहीं था, डॉक्टरों ने कहा O2 नहीं मिल रहा।
- जन्म के समय से ही झटके आने लगे।
- डॉक्टरों ने २५ दिन आईसीयू में रखा।
- फिर वेल्पारिन आदि कई दवायें चलीं तो झटके कम हो गये।
- चौथे माह डॉक्टरों ने ‘एड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्मोन’ (Acth) के इंजेक्शन लगाये बस फिर झटके आने लगे।
- अब तो बच्ची में ऐसा वजन बढ़ा कि 8 माह की होकर भी कुछ हरकत नहीं करती है।
- रम्या की माँ यह सब बार-बार बताते आँसू भर देती। उनकी मानसिक दशा और पीड़ा हम समझ रहे थे।
हमने कहा कि कु॰ रम्या की इस अवस्था के आप ही जिम्मेदार हैं, यह जानते हुए भी कि एलोपैथिक से लाभ के स्थान पर बच्ची लगातार मानसिक और शारीरिक स्तर से खराब होती जा रही है तब भी आपने एलोपैथ को ही लादे हुये हैं।
उन्होंने कहा कि हमें पता ही नहीं था कि इस रोग का इलाज एलोपैथ में है ही नहीं। हमें तो वेदांत शुक्ला के पिता रवि शुक्ला (छतरपुर) ने यहाँ का पता बताया।
हमने आश्वासन दिया कि परेशान न हों दवायें भी छूटेंगी और रोग भी। इस हेतु पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन चिकित्सा की सलाह दी। वे तुरन्त भर्ती हो गये।
जब हमने रोग की सम्प्राप्ति विनिश्चय की तो स्पष्ट हुआ कि रोग तो कुछ और है और एलोपैथ में अभी तक केवल नशीली दवा देकर दौरे/झटके को दबाने का ही प्रयास किया गया है। रोग को जड़ से नष्ट करने की चिकित्सा ही नहीं की गयी। सच तो यह है कि-
सर्वांगसंश्रयस्तोदभेदस्फुरणभञ्जनम्।
स्तम्भनाक्षेपणस्वापसन्ध्याकुंचनकम्पनम्।।अ० हृ० नि० 15/15-16।।
शरीर में जब वायु का कार्य विकृत हो जाता है तो कम्पन, झटके, फड़कना, सुई चुभोने जैसी पीड़ा, फटन, जोड़ों में सिकुड़न आदि होते हैं।
कु॰ राम्या की एमआरआई (ब्रेन) और ई०ई०जी० रिपोर्ट भी Hypoxic ischemic Injury अर्थात् ‘मस्तिष्क में ऑक्सीजन (प्राणवायु) का प्रवाह कम’ लिखकर भी यही बता रही है कि शरीर में वायु का कार्य बिगड़ा है पर एलोपैथिक डॉक्टरों का इधर ध्यान कहाँ? वहाँ तो केवल झटकों को रोकने और सुलाने की दवा दी जाती है। भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं-
यदा तु धमनी: सर्वा: कुपितोऽभ्येति मारुत:।
तदाक्षिपत्याशु मुहुर्मुहुर्देहं मुहुश्चर:।
मुहुर्मुहुस्तदाक्षेपादाक्षेपक इति स्मृत:।।सु० नि० 1/50-51।।
जब असंतुलित (कुपित) वायु शरीर की सभी धमनियों को व्याप्त कर लेता है तो बारम्बार चलनशील वायु से जल्दी-जल्दी बार-बार आक्षेप होने लगते हैं। शरीर में बार-बार आक्षेप (झटके) होने के कारण इस रोग को ‘आक्षेपक’ (सीजर इपिलेप्सी) कहते हैं। जब ई०ई०जी० करायी जाती है तो सीजर या इपिलेप्सी की रिपोर्ट आ जाती है।
इस प्रकार वैदिक चिकित्सा सिद्धान्तों से ‘डायग्नोस’ करने पर इस रोग की सम्प्राप्ति इस प्रकार पायी गयी-
हेतु सेवन ➡ वात प्रकोप ➡ व्यान वायु प्रकोप ➡ रसधातु सहित धमनियों की व्याप्ति ➡ वृद्धिजन्य अंगों का फड़कन ➡ आक्षेपक (झटके/दौरे)।
सदैव ध्यान रखना चाहिए कि शरीर में जो भी चेष्टायें संकोच, प्रसार, शाखाश्रित अवयवों की क्रियायें होती हैं वह व्यानवायु के अधीन हैं, पेशियों में संकोच प्रसार अंगों का फड़कना यह व्यानवायु की वृद्धि का संकेत है क्योंकि व्यानवायु ही पूरे शरीर में रस धातु कर प्रसरण विक्षेपित (झटके) से करती है।
‘व्यानेन रसधातुर्हि विक्षेपोचितकर्मणा।।’
च० चि० 15/36।।
गतिप्रसारणाक्षेपनिमेषादिक्रिय: सदा।।
च० चि० 28/9
वाग्भट बताते हैं कि-
व्यानो हृदिस्थित: कृत्स्नदेहचारी महाजव:।
गत्यपक्षेपणोत्क्षेप निमेषोन्मेषणादिका:।
प्राय: सर्वा: क्रियास्तस्मिन् प्रतिबद्धा: शरीरिणाम्।।अ० हृ० 12/6-7।।
अर्थात् यह व्यानवायु हृदय में स्थित रहकर सम्पूर्ण शरीर में विचरण करता है, यह बहुत वेगवान् होता है। गति, झटके/दौरे ऊपर की ओर गति देना आदि क्रियायें इसी के अधीन हैं।
बताते चलें कि इस प्रकार रोग की चिकित्सा बहुत ही सरल है। केवल वायु की गति को संतुलित कर देना है। व्यानवायु का कार्य सही कर देना है। पर दुर्भाग्य यह है कि रोग के मूल कारण की खोज न कर केवल सुलाये रहने की दवा दी जाती है परिणाम बच्चे शिथिल होता जाता है। कु॰ रम्या की चिकित्सा शुरू की तो सर्वप्रथम-
‘स्नेहैरुपाचरेत् वायुं साम्ललवणैरनुवासनै:,
नावनैस्तर्पणैश्चान्नै: सुग्निग्धं स्वेदयेत्।।’
स्रोतोबद्ध्वाऽनिलं रुन्ध्यात् तस्मात् तमनुलोमयेत्।।आदि चरक चिकित्सा 28।। के सूत्रों के अनुसार।
बाह्याभ्यंतर स्नेहन, तर्पण, स्वेदन और अनुलोमन। इसके लिए बस्तियों का प्रयोग, स्निग्ध, अनुलोमक, तर्पक, स्वेदल और पोषक औषधियों- अम्बरशिलादि योग, त्रैलोक्यचिंतामणि (रस योग सागर), हेमवती, ब्राह्मी, दुरालभारिष्ट, शु॰ वत्सनाभ आदि औषधियाँ दी गयीं।
परिणाम- एक सप्ताह में कु॰ रम्या के झटके कम होने लगे, उसमें नई चेतना आने लगी। माता-पिता प्रसन्न होने लगे, वे कहने लगे कि अब कु॰ ‘रम्या’ अच्छा जीवन जियेगी। धीरे-धीरे एलोपैथिक दवायें कम कर दी गयीं और कु॰ रम्या को डिस्चार्ज कर दिया गया। 2 माह 7 दिन तक घर में ही दवायें सेवन करायी गयीं, अब झटके पूरी तरह से बन्द हो गये।
3 माह बाद पुन: 10 दिन के लिए ‘आयुष ग्राम’ में रखा गया फिर स्नेहन, स्वेदन, तर्पण अनुलोमन बस्तियाँ और औषधियों का प्रयोग किया और सभी एलोपैथिक दवायें बन्द करा दीं।
रम्या की चिकित्सा करते हुए हमें अब 5 माह हो गये। कु॰ ‘रम्या’ निरन्तर विकास कर रही है वह अब 13 माह की हो गयी। पर पछतावा यह है कि वह एलोपैथिक खाते-खाते 8 माह तक शिथिल रही तथा झटके आते रहे तथा शारीरिक और मानसिक रूप से 8 माह पीछे हो गयी।
यदि यही बच्ची समय पर वैदिक चिकित्सा में आ जाती तो कितना अच्छा होता, पर देश का दुर्भाग्य है कि समय पर लोग आयुर्वेद की वैदिक चिकित्सा में नहीं पहुँचते। यदि कहीं अप्रमाणिक चिकित्सा में पहुँच भी गये तो कुछ होता भी नहीं। इसीलिए ऐसे सफल केसों का प्रकाशन समाचार पत्रों में आवश्यक हो गया है। हमने यह पाया है कि बच्चा जितना और जितने अधिक दिनों तक एलोपैथ खा चुकता है उतना ही आयुर्वेद चिकित्सा का परिणाम विलम्बित होता है। जितना छोटा बच्चा उतना शीघ्र परिणाम। जितना बड़ा बच्चा उतना देरी से परिणाम।
मेरी 8 माह की बच्ची के दौरे/झटके मिटे!!
मैं सत्यम् अवस्थी इन्कम टैक्स विभाग जबलपुर से, मेरी बेटी रम्या उम्र ८ माह इसे जन्म से ही आक्सीजन की कमी हुयी अब इसे दौरे/ आने लगे। इसे डॉक्टरों ने एनआईसीयू में डाल दिया। आयुष्मान हॉस्पिटल तथा जबलपुर हॉस्पिटल में लगभग 25 दिन तक इलाज चला, 2-3 माह तक झटकों की दवा चलती रही, दवा तो इतनी थी कि हर 10-10 मिनट में दिनभर दवायें देना पड़ता। इधर रम्या शिथिल, सुस्त होती गयी। इन दवाओं से 3 से 4 माह में काफी झटके कम हो गए लेकिन कुछ समय बाद फिर से झटके शुरू हो गये। डॉक्टरों ने दवाइयाँ बढ़ानी शुरू की। बहुत दवायें हो गयीं पर झटके/दौरे कम नहीं हुये।
अब हम नागपुर में डॉ. विनीत वानखेड़े का इलाज चला परन्तु वहाँ भी आराम नहीं मिला। तभी हमें आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट का पता चला तो हम 7 फरवरी 2025 को आयुष ग्राम चित्रकूट आ गये। ओपीडी में रजिस्ट्रेशन करवाया, केसहिस्ट्री हुयी, फिर हमें ओपीडी-2 में आचार्य डॉ. वाजपेयी जी के पास भेजा उन्होंने नाड़ी परीक्षण कर आवासीय चिकित्सा में रहने की सलाह दी। फिर तीन माह बाद और 10 दिन तक आवासीय चिकित्सा की सलाह दी।
हम रम्या को लेकर भर्ती हो गये, चिकित्सा शुरू हुयी, 10 दिन में ही मेरी बेटी को बहुत आराम लगा। पहले झटके लगभग 30-40 बार आते थे जो कम होते-होते 10 बार हो गये। चिकित्सा के बाद हमें डिस्चार्ज कर दिया गया। दवायें चलती रहीं, अब 14 अप्रैल 2025 को हम फॉलो-अप में आये। 2 माह 7 दिन के लगातार इलाज से मेरी बच्ची के झटके पूर्णत: बन्द हैं।
अब वह पैर जमीन में रखकर खड़ी हाेने की कोशिश करने लगी, बहुत एक्टिव हो गयी। मैं तो कहता हूँ कि इस रोग का इलाज एलोपैथी में है ही नहीं केवल नशीली दवाओं से सुलाने के अतिरिक्त।
आयुष ग्राम की चिकित्सा एवं पंचकर्म अत्यन्त और अद्भुत कारगर है और यहाँ के स्टॉफ का व्यवहार एवं काम करने का तरीका भी बहुत अच्छा है।
सत्यम् अवस्थी, इन्कम टैक्स ऑफिस, जबलपुर,
निवास- कटंगा इन्कम टैक्स कॉलोनी जबलपुर (म.प्र.)
हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे।
सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्
"चिकित्सा पल्लव" - मासिक पत्रिकाआयुष ग्राम कार्यालय
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर
सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग)
चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)
प्रधान सम्पादक
आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
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